इलाहाबाद में एक समय वो भी आया था
जब चाय के अड्डो के साथ साथ भुट्टे के भी अड्डे इजाद किए जा रहे थे
अभी भी वो बाते याद हैं जब भुट्टा वाली चाची से
नरम नरम और गरम गरम भुट्टों की फरमाइस होती थी
बैठे बैठे कितने भुट्टे पेट के अंदर चले जाते थे, पता ही नही चलता था
भुट्टो के डंठल में लगे कुछ दानों को गिलहरी खाते हुए
कुछ भाई लोगों ने कैमरे में कैद भी किया और अखबार में छपी भी वो फोटो
तमाम यादें जुड़ी हैं उस भुट्टे वाले चौराहे से..
लेकिन अब शायद वहां कोई नही जाता होगा
क्योंकि उस चौराहे पर बैठकी करने वाले
अब कई अलग अलग शहरों में चाय की बैठकी कर रहे हैं।
Wednesday, January 16, 2008
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