मै पलकें नीची किये बगल से गुजर जाऊंगा जब तुम
किसी पार्क में --------------.रही होगी, क्योंकि मेरे बाप का क्या जाता
है?, मै देख कर भी अनदेखा करूँगा क्योंकि, मुझसे क्या मतलब होगा?...तुम कुछ
भी करो, मै अपने काम से काम रखूँगा, जब किसी दीवार के पीछे या झाडियों की
ओट से या किसी तनहा कमरे से तुम्हारी आहट मिलेगी क्योंकि, तुम्हें अपना
भला-बुरा अच्छी तरह पता है!!..पर याद रखना मै उस वक्त भी चुप रहूँगा जब तुम
किसी के एक फोन पर उससे मिलने जाओगी इंडिया गेट, या किसी पब या बार के
बाहर जब तुम्हारे कपडे तार-तार हो रहे होंगे या जब किसी चलती बस में
तुम्हारा बालात्कार हो रहा होगा ....मुझे डर होगा कही तुम फिर मुझे अपना
रास्ता देखने की नसीहत न पकड़ा दो ..... मुझे हमेशा दुख रहेगा उन माँ-बाप के
लिए जो तुमपर भरोसा करते है...इश्वर सबको सदबुद्धि दे.....Abhimanyu.
Friday, January 25, 2013
Tuesday, January 8, 2013
सर्दी का सितम बदस्तूर जारी है...पूस की
रात...कहर बनकर बरप रही है...सर्द हवाओं की एक चादर फैल गई है..जिसने जीवन की
रफ्तार पर लगाम लगा दी है....गंगा की लहरों पर लिख गई हैं ठिठुरन की दास्तां....और
इस दास्तां को पढ़ने और समझने के लिए घाटों से नदारद हो गए हैं...गंगापुत्र....तापमान
का स्तर नेतांओं के बयान की तरह दिन ब दिन नीचे होता जा रहा है....दस जनवरी तक
वाराणसी के जिलाधिकारी महोदय ने स्कूलों के बंद करने के आदेश दे दिए हैं...लेकिन मौसम विभाग की मानें तो फिलहाल प्रचंड ठंड जारी रहेगी...कहते हैं...हवा का तेज़ खंजर सबसे ज्यादा
बुढ़ापे में काटता है...लेकिन हवाएं जब बर्फ की बयार बनकर बहें...तो क्या महिलाएं...क्या
पुरुष... क्या नौजवान...क्या बच्चे...क्या बूढ़े...सब त्राहिमाम करते नजर आ रहें
हैं....जिस गली पर... जिस चौराहे पर आग की शक्ल भी नजर आती है...चार हाथ उसे सेंक
लेना चाहते हैं.....कहते हैं सर्दी से लोग पर गए....माफ कीजिएगा साहब...लेकिन सर्दी जानलेवा नहीं
होती...वरना सर्द प्रदेशों में रहने वाले लोग मर गए होते...जानलेवा होती है शासन
प्रशासन की बदइंतजामी...यहा भी नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा भीषण ठण्ड से बचने
के लिए न कोई व्यवस्था की गई न रैन बसेरा का समुचित इंतजाम...
सूबे की सरकार ने हिदायत दी है कि...शेल्टर होम
दिन रात खोले जाएं...कंबल बांटे जाएं.... हर चौराहे और बस अड्डों पर दिन रात अलाव
जले...लेकिन हिदायत का क्या है...अक्सर दी जाती है....
ये तेज सर्द हवा ये ठिठुरन भरा मौसम
खुदा कसम ये जनवरी अब जानलेवा है
Wednesday, January 2, 2013
इतिहास
इतिहास की किताब होती हैं स्त्रियां
उन्हें भूगोल मान कर पढ़ने की कोशिश
गलती को न्योता देना है
दिल वालों, दिल्ली वालों।
भूगोल के मर्मज्ञ भी
छोड़ नहीं पाते लोभ
भूगोल का इतिहास जानने का
स्त्रियों के अतीत में झांकने का
मुनियों ने गुना, शास्त्रों में कहा
होता है पाप का कारण लोभ
बेहतर है छोड़ दिया जाए
इतिहास में झांकने का लोभ
अभी वक्त नहीं आया
स्त्रियों के तारीख के खुलने का
कोई सह कहां पाएगा आज
उसकी दहन, उसका ताप
दिल वालों, दिल्ली वालों।
जनतंत्र का तकाजा
तकाजा तो था कि
तुम कहते, हम सुनते
जब हम बोलते
तब तुम चुपचाप सुनते
जब मैं बोलता हूं
तब तुम सुनते नहीं
अपनी ही कहेगे तो
कहां पहुंचेंगे सब
कुछ कहेंगे आप
हम तकाजों का करते रहेंगे तकादा
तो कहां जाएगा देश
क्या जनतंत्र कहलाता रहेगा यूं हीं नाखादा
या कहने, सुनने की नातेदारी से
बनेगी बात कोई अब।
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