Tuesday, July 30, 2013

तीस साल का इतिहास

तीन, साढ़े तीन दशक !!!! बहुत लम्बा समय होता है यह..एक पूरी जन्मी पीढी स्वयं जनक बन जाती है इस अंतराल में.चालीस से अस्सी बसंत गुजार चुके किसी से पूछिए कि इस अंतराल में क्या क्या बदला देखा उन्होंने..समय की रफ़्तार की वे बताएँगे..परन्तु कई बार कुछ चीजों को देख प्रवाह और परिवर्तन की यह बात एकदम गलत और झूठी लगने लगती है.लगता है इस क्षेत्र विशेष में तो कुछ भी नहीं बदला.यहाँ आकर घड़ी की सुइयां एकदम स्थिर हो टिक टिक कर चलने ,गुजरने का केवल भ्रम दे रही हैं..
लगभग तीन दशक पहले मूर्धन्य व्यंगकार श्री शरद जोशी जी ने समय के उस टुकड़े को कलमबद्ध किया था अपने आलेख "तीस साल का इतिहास" में जो उनकी पुस्तक " जादू की सरकार" में संकलित है..कईयों ने पढ़ा होगा इसे, पर मैं अस्वस्त हूँ कि इसका पुनर्पाठ किसी को भी अप्रिय न लगेगा ...प्रस्तुत है श्री शरद जोशी जी द्वारा लिखित उनकी पुस्तक "जादू की सरकार" का आलेख " तीस साल का इतिहास " जिसे पढ़कर बस यही लगता है कि राजनीति में कभी कुछ नहीं बदलता,चाहे समय कितना भी बदल जाए..
"तीस साल का इतिहास"

कांग्रेस को राज करते करते तीस साल बीत गए . कुछ कहते हैं , तीन सौ साल बीत गए . गलत है .सिर्फ तीस साल बीते . इन तीस सालों में कभी देश आगे बढ़ा , कभी कांग्रेस आगे बढ़ी . कभी दोनों आगे बढ़ गए, कभी दोनों नहीं बढ़ पाए .फिर यों हुआ कि देश आगे बढ़ गया और कांग्रेस पीछे रह गई. तीस सालों की यह यात्रा कांग्रेस की महायात्रा है. वह खादी भंडार से आरम्भ हुई और सचिवालय पर समाप्त हो गई.

पुरे तीस साल तक कांग्रेस हमारे देश पर तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ सी जमी रही. पुरे तीस साल तक कांग्रेस ने देश में इतिहास बनाया, उसे सरकारी कर्मचारियों ने लिखा और विधानसभा के सदस्यों ने पढ़ा. पोस्टरों ,किताबों ,सिनेमा की स्लाइडों, गरज यह है कि देश के जर्रे-जर्रे पर कांग्रेस का नाम लिखा रहा. रेडियो ,टीवी डाक्यूमेंट्री , सरकारी बैठकों और सम्मेलनों में, गरज यह कि दसों दिशाओं में सिर्फ एक ही गूँज थी और वह कांग्रेस की थी. कांग्रेस हमारी आदत बन गई. कभी न छुटने वाली बुरी आदत. हम सब यहाँ वहां से दिल दिमाग और तोंद से कांग्रेसी होने लगे. इन तीस सालों में हर भारतवासी के अंतर में कांग्रेस गेस्ट्रिक ट्रबल की तरह समां गई.
जैसे ही आजादी मिली कांग्रेस ने यह महसूस किया कि खादी का कपड़ा मोटा, भद्दा और खुरदुरा होता है और बदन बहुत कोमल और नाजुक होता है. इसलिए कांग्रेस ने यह निर्णय लिया कि खादी को महीन किया जाए, रेशम किया जाए, टेरेलीन किया जाए. अंग्रेजों की जेल में कांग्रेसी के साथ बहुत अत्याचार हुआ था. उन्हें पत्थर और सीमेंट की बेंचों पर सोने को मिला था. अगर आजादी के बाद अच्छी क्वालिटी की कपास का उत्पादन बढ़ाया गया, उसके गद्दे-तकिये भरे गए. और कांग्रेसी उस पर विराज कर, टिक कर देश की समस्याओं पर चिंतन करने लगे. देश में समस्याएँ बहुत थीं, कांग्रेसी भी बहुत थे.समस्याएँ बढ़ रही थीं, कांग्रेस भी बढ़ रही थी. एक दिन ऐसा आया की समस्याएं कांग्रेस हो गईं और कांग्रेस समस्या हो गई. दोनों बढ़ने लगे.
पुरे तीस साल तक देश ने यह समझने की कोशिश की कि कांग्रेस क्या है? खुद कांग्रेसी यह नहीं समझ पाया कि कांग्रेस क्या है? लोगों ने कांग्रेस को ब्रह्म की तरह नेति-नेति के तरीके से समझा. जो दाएं नहीं है वह कांग्रेस है.जो बाएँ नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य में भी नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य से बाएँ है वह कांग्रेस है. मनुष्य जितने रूपों में मिलता है, कांग्रेस उससे ज्यादा रूपों में मिलती है. कांग्रेस सर्वत्र है. हर कुर्सी पर है. हर कुर्सी के पीछे है. हर कुर्सी के सामने खड़ी है. हर सिद्धांत कांग्रेस का सिद्धांत है है. इन सभी सिद्धांतों पर कांग्रेस तीस साल तक अचल खड़ी हिलती रही.

तीस साल का इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा. जो कहा वो किया नहीं, जो किया वो बताया नहीं,जो बताया वह था नहीं, जो था वह गलत था. अहिंसा की नीति पर विश्वास किया और उस नीति को संतुलित किया लाठी और गोली से. सत्य की नीति पर चली, पर सच बोलने वाले से सदा नाराज रही.पेड़ लगाने का आन्दोलन चलाया और ठेके देकर जंगल के जंगल साफ़ कर दिए. राहत दी मगर टैक्स बढ़ा दिए. शराब के ठेके दिए, दारु के कारखाने खुलवाए; पर नशाबंदी का समर्थन करती रही. हिंदी की हिमायती रही अंग्रेजी को चालू रखा. योजना बनायी तो लागू नहीं होने दी. लागू की तो रोक दिया. रोक दिया तो चालू नहीं की. समस्याएं उठी तो कमीशन बैठे, रिपोर्ट आई तो पढ़ा नहीं. कांग्रेस का इतिहास निरंतर संतुलन का इतिहास है. समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया. नारा दिया तो पूरा नहीं किया. प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ पब्लिक सेक्टर को खड़ा किया, पब्लिक सेक्टर के खिलाफ प्राइवेट सेक्टर को. दोनों के बीच खुद खड़ी हो गई . तीस साल तक खड़ी रही. एक को बढ़ने नहीं दिया.दूसरे को घटने नहीं दिया.आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे, विदेशों से मदद मांगते रहे. 'यूथ' को बढ़ावा दिया, बुड्द्धों को टिकेट दिया. जो जीता वह मुख्यमंत्री बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया. जो केंद्र में बेकार था उसे राज्य में भेजा, जो राज्य में बेकार था उसे उसे केंद्र में ले आए. जो दोनों जगह बेकार थे उसे एम्बेसेडर बना दिया. वह देश का प्रतिनिधित्व करने लगा.

एकता पर जोर दिया आपस में लड़ाते रहे. जातिवाद का विरोध किया, मगर अपनेवालों का हमेशा ख्याल रखा. प्रार्थनाएं सुनीं और भूल गए. आश्वासन दिए, पर निभाए नहीं. जिन्हें निभाया वे आश्वश्त नहीं हुए. मेहनत पर जोर दिया, अभिनन्दन करवाते रहे. जनता की सुनते रहे अफसर की मानते रहे.शांति की अपील की, भाषण देते रहे. खुद कुछ किया नहीं दुसरे का होने नहीं दिया. संतुलन की इन्तहां यह हुई कि उत्तर में जोर था तब दक्षिण में कमजोर थे. दक्षिण में जीते तो उत्तर में हार गए. तीस साल तक पुरे, पुरे तीस साल तक, कांग्रेस एक सरकार नहीं, एक संतुलन का नाम था. संतुलन, तम्बू की तरह तनी रही,गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही बर्फ सी जमी रही पुरे तीस साल तक.
कांग्रेस अमर है. वह मर नहीं सकती. उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएँगे. जब तक पक्षपात ,निर्णयहीनता ढीलापन, दोमुंहापन, पूर्वाग्रह , ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता. कांग्रेस कायम रहेगी. दाएं, बाएँ, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी. इस देश में जो भी होता है अंततः कांग्रेस होता है. जनता पार्टी भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी. जो कुछ होना है उसे आखिर में कांग्रेस होना है. तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएँगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली...
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साभार, व्यंगकार श्री शरद जोशी जी के संकलन "जादू की सरकार" के "तीस साल का इतिहास" से !!!

Friday, July 26, 2013

मज़ाक

भूख से बेबस हुए, लाचार उस मजबूर से
पेट से घुटने सटाकर सो रहे मजदूर से
पूछिए क्यों रो रहे घर के दरों दीवार हैं
क्यों चली जाती हैं खुशियां देखकर ही दूर से
दर्द और तकलीफ की ये आयतें किस्से में हैं
और साहब आप कहते हैं कि हम गुस्से में हैं...

(उस किस्मतवाले के लिए ये लाइनें हैं जो अपनी किस्मत का खा रहा है, अपनी किस्मत का चमका रहा है, हमारी मेहनत पर शहंशाह बनने का सब्ज़बाग सज़ाने वाले उस बेवकूफ आदमी को मालूम नहीं कि गुस्से की पराकाष्ठा क्या हो सकती है...)

Wednesday, July 24, 2013

अजी छोड़िए

अजी छोड़िए
कौन सजाए सपने फिर से
पलके बोझिल कौन करे
कौन लगाए सांस पे पहरे
कौन जले तिल तिल
जागे कौन रात भर फिर से
कौन लगाए दिल
अजी छोड़िए
अब मोहब्बत की बात
आइए जीते हैं यायावर बनकर...

Tuesday, July 23, 2013

राष्ट्रवादी


जन्म हुआ हिंदू के घर में
हिंदू हूं,  हिंदूवादी नहीं हूं।
 
भारत में जन्म हुआ
उसका आकाश, उसकी माटी
उसके पाताल सब मुझमे हैं
भारतीय हूं,  भारतवादी नहीं हूं।
 
गुंजाइश कहां देता है देश
कि हिंदू न रहूं,  भारतीय न रहूं।  
 
जो राष्ट्र है मेरे अंदर-बाहर
दाएं-बाएं, अगल-बगल, नीचे-ऊपर
उसको कैसे अपनाऊं
कोई सिद्धांत बनाकर, कोई वाद समझकर।
कैसे बन जाऊं राष्ट्रवादी, कोई बताए मुझे।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

मकान

 
  लोहा को जमीन के भीतर से निकाला
रेत निकाला नदियों की तलहटी से
पहाड़ों को तोड़ बनाए गिट्टियों के बीज
मिट्टी को कोयले की आंच में पका
बनाया एक नंबर, दो नंबर सूर्ख ईंटे।  
 
 
रेत, सीमेंट, ईंट, कुछ छड़ें, ईंटें  
जमीन में बो आया एक दिन
आस थी कि मकान उग जाएगा किसी रोज
सींचता रहा रोज-रोज आस की खेती
 
पहाड़ बढ़ता रहता है रोजरोज
बालू बहता है नदी के संग-संग
लौह अयस्क बदलता है रूप धरती में
सब जिंदा हैं, जीवंत कायनात में
 
 
फिर भी खेती उगी नहीं कभी
बहुत सींचा, रात-रात भर जाग
जमीन पर नहीं उगी एक झोपड़ी भी
 
 
गिट्टियों ने कहा, पहाड़ के संग बढ़ती थी मैं
बोली रेत, नदीं के प्यार में बहती थी वह
माटी बोली, मुझे तपा बना दिया सूर्ख ईंट
कर दिया उलट-पुलट सब, तोड़ दिए कई घर
 
क्यों किया लोहा को धरती से जुदा
क्यों‌ किया रेत को नदी से अलग
क्यों किया पहाड़ में तोड़फोड़
 
धरती को चीर-फाड़ कर कैसे रहोगे आबाद
कैसा है बेदर्द तुम्हारा घर का यह ख्वाब।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 

Monday, July 15, 2013

भूख बड़ी ज़ालिम होती है

1-
भूख बड़ी ज़ालिम होती है
वो...जो कल तक
अच्छा खासा इंसान था
मासिक धर्म में
इस्तेमाल किए गए
कपड़े की तरह
सड़क पर फेंका गया
पेट की अंतड़ियों ने
भीतर भूगोल बना लिया
और
वो अच्छा खासा इंसान
एक दाने के लिए सड़क पर
यूं बैठ गया
जैसे बैठ जाता है
मुर्दा चांद
किसी शोकाकुल छत पर
निरर्थक होकर...


2-

भूख बहुत ज़ालिम होती है
उसमें न कसक होती है
न लचक होती है
मैंने सोचा
देखकर उस पागल इंसान को
जैसे देख रहा हूं
भूख से बिलखते
हिंदुस्तान को....

3

भूख बहुत ज़ालिम होती है
ये जानती है
हमारी सरकार भी
इसलिए
कभी वोट की राजनीति करती है
कभी पेट की
इस बार पेट का पाखंड है
खाना चाहिए तो लगाना होगा
पंजे पर ठप्पा
वरना भूख का दंड है
सड़क पर आओगे
और
कुत्ते की मौत मारे जाओगे....

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