Friday, May 30, 2008

नमन चाय बैठकी में होने वाली बतकही को

meerut कल poorw men हुए तीन हत्याकांड के विरोध में बंद था सुबह ८ बजे से ड्यूटी शुरू हुई बाजार स्वतःस्फूर्त से बंद दिखा । कुछ पारंपरिक तस्वीरों के कैद करने से iter की चाहत दिन bhar jehan में tari रही सो मैं भी दिन bhar शहर में होने और न होने (sannata) वाली gatividhiyon को अपने camere में sahejata रहा। hukka gudgudate bephikra बाबा, फ़ोन से apno ko अपनी kushlta और शहर के halat के bare में batiyate लोग, bhoonkh और pyas से kumbhlate ड्यूटी per mustaid sipahi और भी कुछ sunder तस्वीरें मिली। sham होते होते thakan के karan चाय की talab हुई , चाय बैठकी की yaad ayi, आप सब yaad aye, अपना शहर yaad aya।......................लिक्खाड साथियों कुछ गलती हो तो माफ करना।

Monday, May 26, 2008

Mai,maa aur munnavar



Abhinav Bhai ka lekh mera matlab ki PoST Mai Maa aur Munavvar padh kar kuch kahana sahimai muskil hai to unkey liye ye ek Tasveer....


Abhimanyu.


Suneel Bhai se aaj bat hui to unhone kaha ki aajkal chaybaithaqi nahi ho rahi hani ye ghalat baat hain to maine unse kaha ki aaj hi main shamil hoto hoon tab unhone apni naarazgi ka raaz khola ki aaj hi unhone nayi tasveeren

upload ki hain to maine kaha tb fir mai aaj hi uska counter karta hoon

To ye counter kaisa aap log zroor batayen. abhimanyu.

aur inko kya kahen




Sudar ye bhi kam nahin par aapke unki jaise nahin


कितनी सुंदर हो


हाथ मिलावो दोस्त


अनुराग चयेडी


खुशी के ये पल


रंग.


Sunday, May 11, 2008

मैं, माँ और मुनव्वर

मैने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू,
मां ने मुद्दतों नहीं धोया दुपट्टा अपना।
- मुनव्वर राणा

दरअसल "माँ" पर लिखने को मैने कई बार सोचा। कई बार कलम उठाई। कई कागज खराब किए। मन-मस्तिष्क में उठ रहीं असंख्य भावनाओं को जब-जब शब्द देने की कोशिश की, असफल रहा। असफल इसलिए क्योंकि हर बार मुनव्वर राणा की चन्द पंक्तियाँ याद आईं और मैं मां के ख्यालों में खो गया। और इस कदर खो गया कि फिर कुछ भी लिखने-पढ़ने का मन नहीं किया। हां, एक बात और... वो ये कि मुनव्वर साहब ने "मां" पर जो कुछ लिख डाला है उसे पढ़ना ही मेरे लिए इतना सुखद होता है कि खुद कुछ लिखना बेहद ग़ैरज़रूरी और बेमतलब सा लगता है। मुझे याद है वो दिन जब मैं दैनिक जागरण इलाहाबाद में अपने कार्यकाल के दौरान मुनव्वर साहब से मिला था, इंटरव्यू के सिलसिले में। उन दिनों मैं इलाहाबाद में श्री एस एस ख़ान के साथ काम कर रहा था। मुझे खूब ठीक से याद है कि जब-जब ख़ान साहब अपनी स्मृतियों में खोते, अपने पत्रकार मित्र प्रताप सोमवंशी से लेकर जनाब मुनव्वर राणा तक कई लोगों के नाम उनकी ज़ुबान पर होते। मुझे वो दिन भी याद है जब एक बार मुनव्वर एक मुशायरे में इलाहाबाद आए और ख़ान साहब के साथ मैं उनसे मिला। घंटे भर की उस अनौपचारिक मुलाकात में मुनव्वर साहब बस बोलते रहे और हम सुनते रहे। मैं मंत्रमुग्ध सा कभी उन्हें देखता तो कभी उनके हाथों में दम तोड़ती सिगरेट को, जो शायद ही एक-आध बार उनके होठों तक पहुँची थी। वहाँ से लौटते वक़्त मैं लगभग झूम रहा था। वो इसलिए क्योंकि मुनव्वर साहब ने मेरे लिए चन्द लाइने लिखकर मुझे अपनी एक किताब के साथ विदा किया था। आज "मदर्स डे" पर फिर मैने जब कुछ लिखने की कोशिश की तो मां ( जो फिलहाल सैकड़ों किलोमीटर दूर इलाहाबाद में हैं ) और मुनव्वर एक साथ इतना याद आए कि कुछ भी लिख पाना दूभर हो रहा है.
- अभिनव राज, दिल्ली।

Friday, May 9, 2008

देश के 2 न्यूज़ चैनल : एक का तमाशा, दूसरे की अपील

अभी कल ही क़ी बात है। देश का सबसे उम्रदराज 24 घंटे का हिन्दी न्यूज़ चैनल करवट बदल रहा था। सभी की निगाहें टिकी हुईं थी- एक नई शुरुआत पर। तय समय था रात के 9 बजकर 56 मिनट। ठीक समय पर चैनल के "लोगो" पर से परदा उठा और स्क्रीन पर हिन्दी न्यूज़ चैनलों का एक जाना पहचाना चेहरा उभरा। पुण्य प्रसून बाजपेयी। प्रसून अपने चिरपरिचित अंदाज़ में दर्शकों से रूबरू थे। पर ब्रांडिंग के इस दौर में दर्शक तो किसी "मेगा रीलांच" की उम्मीद लगाये बैठे थे। लोगों को इंतज़ार था तो किसी आमूलचूल परिवर्तन का। तभी नज़र पड़ी चैनल के "लोगो" पर, जिसका रंग बदल चुका था। दिमाग में पिछली तमाम यादें ताज़ा हो आईं। जब किसी चैनल के आने पर बालीवुड से लेकर नेताओं की बधाइयों का सिलसिला शुरू हो जाता था। बधाइयों का सिलसिला अब शुरू होगा की तब, मैं इसी ऊहापोह में था। तभी याद आई कुछ देर पहले की गई एक महिला एंकर की अपील- "बदले हुए चैनल की बदली हुई खबर आपको सोचने पर मज़बूर कर देगी"। मैने सोचने की पुरजोर कोशिश की। दिमाग़ पर भरपूर ज़ोर डाला की आख़िर ऐसा क्या देख पा रहा हूँ कि मैं सोच में पड़ जाऊं। एक बार फिर नज़र पड़ी चैनल के "लोगो" पर। नीचे लिखा था ज़रा सोचिए। मैने फिर सोचने की नाकामयाब कोशिश की। कुछ समझ में नहीं आया। रिमोट उठाया और चैनल बदल दिया। एक दूसरे टीवी न्यूज़ चैनल पर पहुँचते ही अँगुलियाँ एक बार फिर ठिठक गईं। उम्र में ये चैनल पहले वाले चैनल से थोड़ा ही छोटा था। इस चैनल का एक एंकर-पत्रकार WWE के पहलवान "खली" से दो-दो हाथ करने की फिराक में था। मन में उत्सुकता और सहानुभूति (एंकर के प्रति) एक साथ जगी। बतिस्ता और केन जैसे पहलवानो से तथाकथित नकली फ़ाइट करने वाला बच्चों का चहेता "द ग्रेट खली" कम से कम इस एंकर पर तो भारी ही पड़ेगा। तमाशा जारी था तभी मैने देखा, खली ने एंकर और उस बहुचर्चित पत्रकार को उल्टा उठाकर टाँग लिया। किसी न्यूज़ चैनल के स्क्रीन पर कोई पत्रकार ऐसी हालत में पहली बार नज़र आया था- असहाय और हारा हुआ। मुझे तुरंत पहले वाले चैनल क़ी टैगलाइन याद हो आई- "ज़रा सोचिए"। इस बार मैं वास्तव में सोच में पड़ गया था। मुझे लगा, तमाशा ही सही पर दिखाया तो "सौ फीसदी सच"। आख़िर पत्रकार और न्यूज़ चैनल क़ी तो यही दशा हो चुकी है...!!!
अभिनव राज

Sunday, May 4, 2008

सिक्ता देव की सीख

पत्रकारों की नई फसल को सींचने इलाहाबाद पहुँची एनडीटीवी की वरिष्ठ एंकर और पत्रकार सिक्ता देव बीते २ और ३ मई को इलाहाबाद में थीं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ फोटोजर्नलिज्म एण्ड विजुअल कम्युनिकेशन विभाग में सिक्ता छात्रों से रूबरू थीं। वेशभूषा और वाणी में अपनी चिरपरिचित सौम्यता ओढ़े सिक्ता बोले जा रहीं थीं और छात्र मंत्रमुग्ध होकर सुने जा रहे थे। टीवी पत्रकारिता में एक लंबा सफ़र तय कर चुकीं सिक्ता ने इन भावी पत्रकारों को टीवी न्यूज़ के कई गुर भी सिखाए। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में सफलता के लिए उत्साह और धैर्य नितांत ज़रूरी है। उम्मीद है दो दिन की कार्यशाला में सिक्ता की सोहबत और उनकी सीख छात्रों को एक दिशा ज़रूर देगी।
धन्यवाद सिक्ता... इलाहाबाद आती रहिएगा॥!
अभिनव राज, दिल्ली।
journalist.raj@gmail.com