Tuesday, November 22, 2011

रेशम का कीट

बुद्ध की मौत हुई
शव अड्डकाशी में लपेटा गया
महीन सूती कपड़ा अड्डकाशी
धूप ताप सीलन से
बचाने वाला महीने कपड़ा
जिसे बुनते थे बुनकर काशी के

बापू ने वस्त्र चुना
तो चुना कपास का बुना
रेशम तो नहीं चुना
जिसे बुनती थी गुलाम
भारत की जनता

स्वामी जी रेशमी वस्त्र पहन
दे रहे हैं अहिंसा पर भाषण‌
उनको सुन हंस रहा है रेशम
सिल्क का कीट दूर
किसी शहतूत के पेड़ पर
किसी अर्जुन की पत्तियां कुरते हुए

रेशम का कीड़ा
पत्तियां खाकर बना
रहा है चमकीला धागा
जिससे  झांकता है ऐश्वर्य
अमीरी और औकात


अपने ही धागे से बनी खोल में
फंसता जाता है रेशम का कीट
एक दिन गिरफ्तार हो जाता है
इससे पहले के वह काकून काटे
उसे उबलना पड़ता है कड़ाह में
खौलते जल के कड़ाह में
ठीक उस कैलेंडर के दृश्य की मानिंद
जिसमें विभिन्न पापों की
यातना का सचित्र वर्णन होता है
जिसमें कम तौलने सजा को
देखते हुए दुकानदार केड़ी मारता है

वह रेशम की चमक ही है
जिसने कीड़े को मारा
वह रेशम की चमक ही है
जिससे चौंधियाकर
काशी के बुनकरों ने
छोड़ दिया कपास को
उस कपास को
जिसके बिना नहींबता पाते
अस्सी के गोस्वामी तुलसीदास
संत के स्वभाव को

अड्डकाशी, मलमल बुनना
करघे पर कपास कसना छोड़ा
अपनाया रेशम के धागे को
उलझते गए अपने तनाबाना में
यमराज की यातना का वही दृश्य
उपस्थित हो गया
दंडपाणि की काशी में
जिसमें हर मरने वाले को
मिलती है सहज मुक्ति

और जिंदा रहने वालों को...
काशी क्या तुम्हारे पास
उनके लिए कुछ है तुम्हारे पास
पंचक्रोशी, अंतरगृही यात्राओं के सिवाय

अजय राय







Saturday, November 19, 2011

जायफल

सर्द हो रहा सब कुछ
हवा, पानी, दरख्त और देह
सब कुछ बर्फ
में ढल जाने को बेकरार
पान लगाते समय
मेडिकल चौराहे के पानवाले की
उंगलियां ठिठुर जाती हैं
सारा शरीर ढंक लीजिए
कान कनटोप में बांध लीजिए
पर पानी पर किसी का क्या असर
दस्ताने कामकाजी उंगलियों की
हिफाजत के लिए नहीं बने
पान और पानी की रिश्तेदारी में
उसकी उंगलियां गल रही हैं
उंगलियों का गलना एहसास है
कि कैसी ठंडक लग रही होगी
दूसरों को
वर्ना रातभर सड़क पर
अलाव के किनारे
काटने वाले कितनी मन्नत से
बुलाते हैं सुबह सूरज को
इसकी खबर लिहाफ में दुबके लोगों को
कहां हो पाती है
कहां पता चलता है कि
हर रात की सुबह
कितनी मन्नतों और
सांसतों के बाद आती है
बहरहाल,
पान वाले की उंगलियों में
सर्दी का थर्मामीटर है
जिसमें चढ़ता-उतरता
रहता है एहसास का पारा
उसने आज सर्दी महसूस की है
ग्राहकों में गर्मी का एहसास
बनाए रखने की उसकी
तरकीब का नाम है जायफल
वह थोड़ा सा जायफल
कसैली के साथ कुतरकर देता है
रत्ती भर जायफल
दिला देता है गर्मी का एहसास
जायफल
जिसने सिसायत की गरमाहट देखी
जायफल जिसके माथे पर हजारों
के कत्ल का कलंक है
जिसके ऊपर जावित्री की
मुलायम पर्त होती है
उसके भीतर गुठली बन
छुपा रहता है जायफल
जिसके फेर में अंग्रेजों ने
वर्षों रखा द्विप को गुलाम
धरती कहीं की बांझ नहीं थी
उस दिन भी और न है आज
पर जो जायफल का बीज ले जाए
उसका मरना तय था
व्यापार के इस एकाधिकार
में कई साल तक तपने के बाद
जायफल ने सीखा जेहन में गर्मी लाना
जायफल तुममें इतनी ताब थी तो
‌फिर क्यों रहे वर्षों गुलाम
बोलो जायफल, बोलो जायफल।

अजय राय

Friday, November 18, 2011

अंखुआ

बुरा वक़्त है
सेहत पर भरी वक़्त
हवा ख़राब है
पानी भी है जानलेवा
सुबह की जिस ताजी हवा का
जिक्र सुनते हैं किस्सों में
गीतों, ग़ज़लों में
वो बयार अब कहाँ उतरती है
शाखों से,
रात भर ओस के दुलार में ठिठके
स्नेह में भीगे दरख्तों के
पंख झटकारने, पत्ते हिलाने
अलसाई शाखों को
झटकारने, झुमाने से
कहाँ पैदा होती है
बाद--नौबहार
सच में बहुत बुरा वक़्त गया है
सेहत के लिए
पेड़ अब वनुकुलित संयंत्र की
हवाएं पीकर हैं जिन्दा
ओस में रहकर भी
भींग कहाँ पाते हैं उसके स्नेह में
इस कठिन वक़्त में
जीने के लिए
लक्जरी कार से जाना पड़ता है दफ्तर
जिम में जाकर गलानी पड़ती है चर्बी
लगनी पड़ती है सुबह मीलों दौड़
करना पड़ता है योग और आसन
गेहूं, अदरक, अलोवेरा, तुलसी
गिलोय, मकोय का
पीना पड़ता है जूस
तब जाकर दिन भर आती-जाती
साँस आराम से,
बहुत जतन करना पड़ता है
सेहत के लिए
संयम बरतना पड़ता है खानपान में
रोज सुबह चबाकर
खाना पड़ता है अंखुआ
मूंग का, चने का
वनस्पतियों के फल से
कहाँ चल पा रहा अब काम
निठारी की शव परीक्षा में
अंखुए ही मिले थे क्षतविक्षत
सुना है ऐसा ही मैंने
सुना है
सुना है कसर लोगों को कहते
बहुत बुरा वक़्त गया है
आपने भी जरूर सुनी होगी
यह बात
-अजय राय

Tuesday, November 8, 2011

अखबारनवीस

सोलह पेज का अखबार
जिसकी आवाज पर खुलती है नींद
जिसका गहरा नाता है दैनिक क्रिया से
सोलह पेज का अखबार
जिसमें जैविक आनंद समाया है
चपोतने पर जो लगता है चौंसठ पेज का
सोलह पेज अखबार जो
दुनिया भर की खबर सुनाता है सुबह
चाय की चुस्की के साथ।
जिसकी पंक्तियों में तमाम
आशाएं, उम्मीदें दफ्न हैं।
जिसके हर्फों में हाजमें की गोली है
जिसकी सुर्खियों से सत्ता
का शेयर उठता गिरता है
जिसमें छपी आपकी तस्वीर
पूरे दिन वजूद का एहसास कर देती है
और गहरा, और गाढ़ा
और गर्वान्वित, और ताकतवर
सोलह पेज का वही अखबार
मेरी उनंदी आंखों में चुभता है
सुबह उसकी खड़ की आवाज
मुझे भर देती है एक भाव से
जिसमें असुरक्षा है, गर्व है,
स्पर्धा है, तर्क है
और भी जाने क्या-क्या है
वही सोलह पन्ने का अखबार
जिसमें खोजता हूं मैं अपना सोलहवा सांल
पचास पार की उम्र में भी
मगर
वही सोलह पन्ने का अखबार
बत्तीस, चौसठ, अस्सी
की गिनतियां पार करते समय
रक्तचाप, मधुमेह बनता है
दिल, गुर्दा, जिगर चाटता चलता है
सोलह पन्ने का अखबार
सब कुछ कहता है
बहुत कुछ बताता है
फिर भी चुप रहता है
उस दरख्त के हाल पर
जिसके लुगदी बनने पर
कागज बना
जिसके जलने से स्याही बनी
और जिसके खप जाने से
वह हर्फ बना जो
तय करता है सच का दायरा
झूठ की पर्देदारी।

Thursday, November 3, 2011

पर उसे मेरा ढेर सारा प्यार... अनन्त...

ज़िन्दगी में कुछ टूट सा गया है,
रिश्तें है जो बरसों से साथ रहे,
लेकिन अचानक पराये हो गए,
पता नहीं कैसे, बहुत समझाया,
अपने, अपनों और प्यार का भी वास्ता दिया,
लेकिन बात नहीं बनी, वोह जो सबकुछ था,
आज छोड़ गया, सोचा भी नहीं
मर तो सकता नहीं, पैर जियूँगा कैसे.....?
छुपा भी नहीं सकता, जता भी नहीं सकता
अजीब सा दर्द दे गया
जाते- जाते वोह मुझे
अच्छी निशानी दे गया...


पर उसे मेरा ढेर सारा प्यार...अनंत