Friday, January 11, 2008

"नैनो" पर टिके सभी के नैना...


... और पांच साल की प्रतीक्षा के उपरांत अंततः कल टाटा ने आम लोगों को वह तोहफा दे ही दिया जिसका उन्होने वादा किया था। देश दुनिया से आए हज़ारों लोगों के बीच तीखे नैन-नक्श वाली "नैनो" का घूंघट जैसे ही उठा, लोगों में जैसे एक ख़ुशी की लहर सी दौड़ गई। किसी ने कहा- क्या शानदार लुक्स है, तो कोई इसके फीचर्स को लेकर उत्साहित नज़र आ रहा था। ऐसा लगा जैसे आम आदमी का सपना साकार हो गया हो। और हो भी क्यों न, आख़िर लाख टके की कार में सवार हो अब वह सपनों की उड़ान भरने की तैयारी में जो है। लाख रूपए में करोड़ो के सपनों को सच होता देख भला कौन न झूम उठेगा ?
इन सबके बीच, दिल्ली समेत सभी बड़े शहरों में बढ़ती कारें और कम होती सड़क पर हाय-तौबा मचनी थी सो मची। मीडिया ने दिल्ली में ट्रैफिक पर दबाव की बात को भी उजागर किया। प्रदूषण का भी रोना-पीटना मचा। पर नवागंतुक "नैनो" के स्वागत में मचे शोर-शराबे और उत्साह में सब दब गया। दबना भी चाहिए। प्रगतिशील समाज और देश में जैसे-जैसे हम आगे बढेंगे, तमाम समस्याओं की काट खुद-ब-खुद ढूँढ ली जाएगी।
अंबानी के बाद टाटा...
कुछ सी समय बीता है, जब रिलायंस प्रमुख अंबानी बंधुओं ने आम आदमी के ख्वाब को सच करते हुए उनके हाथों में मोबाइल जैसी चीज़ थमा दी। मध्यम वर्गीय परिवार से लेकर सब्जी का ठेला लगाने वाला हो या फिर शहरी बाबू से लेकर गाँव के खेतिहर तक, मोबाइल हर किसी की जद में पहुंच गया। रोटी, कपडा और मकान के बाद अंबानी ने मोबाइल को चौथी बड़ी ज़रूरत बना डाली। और अब शायद टाटा भी कुछ ऐसे ही प्रयास में है। तो भाई लोगों, " रोटी, कपड़ा और मकान" वाले नारे में मोबाइल के बाद कार शब्द जोड़ने को तैयार हो जाइये।
आपका भाई,
अभिनव राज

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