मुआफी के साथ....
खुशफहमी........मतलब ऐसा वहम जो खुद की ख़ुशी के लिए पाल लिया जाये.... क्यों मेरे भाई सही है ना ???तो मियाँ वहम पलने का सच बताऊँ तो मेरे पास बिल्कुल टाईम नही है... साली पत्रकारिता चीज़ ही ऐसी है (असली वाली.... मेरा मतलब अगर आपने रविन्द्र नाथ त्यागी का 'नक्कालों से सावधान ' पढा हो तो)खैर ये टिप्पणी उतनी भी सार्वजनिक नही थी जितनी इसे धो-पोछ कर साबित कि जा रही है। साफ तौर पर ये शायद संवाद या फिर मतभेद स्थापित करने कि कोशिश थी।खैर मेरे भाई मैं किन-किन विषम परिस्थितियों मे खुश रहा हूँ ये शायद आप जैसे मित्र ना जाने तो फिर तो.....(आज तो भगवान् कि दया और आप मित्रों की दुआ से और भी खुश हूँ )रही बात insted चीज़ कि तो वो इंटरनेट तो हरगिज़ भी नही है क्योंकि बाद मे आप ही चाय बैठकी मे फिर से आम अपील करते नज़र आएंगे और श्लील-अश्लील पर तेज़ टिप्पणी देते नज़र आएंगे)आपसे जैसे बुद्धिजीवियों वाले जवाब कि उम्मीद थी वो नही मिला ... पिछले ब्लोग वाला तेवर, शब्द, मौसिकी का लहजा.... बेगानी सीट पर वोट के लिए अपील टाइप... सब नदारद था।और हाँ मेरे भाई मैं वैसे ही बहुत खुश हूँ बिना खुशफहमी के ....अपने आप को पूरी तरह से वापस लेते हुए... मुआफी के साथ...आपका मित्र....
--Posted By Jayant to Chay Baithkee at 1/07/2008 07:10:00 PM
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