कई पीडी से
देख रही है
आख्ने!
एक ख्वाब
आजादी का !
आजादी
जहा होगी रोटी
हर थली में
अमीरी नहीं चुसे गई
खून गरीबी का
हमारे रहबर
न खून हमारा यू
बहाए गे
नफरत के चिराग
बुझ जाये गे
जिसके लिए
हमारे पुरखो ने
खून बहाया था
क्या वो आजादी
दिन आ गया
लोग जस्न क्यों ?
आजादी का
मना रहे है
मना रहे है
या
सिर्फ खुद को बहला रहे है
या
सिर्फ हमें जला रहे है
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधईयाँ...शुक्रिया
ऐ सुबह! मैं अब कहाँ रहा हूँ
खवाबों ही में सर्फ़ हो चुका हूँ
क्या है जो बदल गयी है दुनिया
मैं भी तो बहुत बदल गया हूँ
मैं जुर्म का ऐतराफ़ कर के
कुछ और है जो छुपा गया हूँ
मैं और फ़क़त उसी की ख्वाइश
इखलाक़ में झूठ बोलता हूँ
रोया हूँ तो अपने दोस्तों में
पर तुझ से तो हंस कर मिला हूँ
अए शख्स मैं तेरी जुस्तुजू से
बेजार नहीं हूँ, थक गया हूँ
Monday, August 18, 2008
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