वहां चाय मिलती है,
या फिर चुस्की मिलती है पूरे शहर की
हां हां चाय की चुस्की के साथ।
गजब का चौराहा है....ये इलाहाबाद का।
रात के दस बजते ही,
एक बेचैनी उठती है इलाहाबादी पत्रकार भाईयों के दिल में
शायद जैसे हसरते जवां होती है वैसे ही
और बस दो घंटे की बैठकी और चाय की चुस्की के साथ
अच्छे अच्छो की मां बहन हो जाती है।
अजब गजब है ये चौराह....चुस्की वाला
मुझे भी याद है, कभी कभी मैं भी बैठता था वहां
पत्रकार से लेकर इलाहाबादी कलाकार तक सब वही मिल जाते थे मुझे
गरमा गरम खबरे और चटोरी से लेकर छिछोरी तक की सभी बाते वही मिल जाती थी
लेकिन छूट गया है मेरा वो चुस्की वाला चौराहा, याद आता है मुझे वो चुस्की वाला चौराहा
लेकिन मेरे चौराहा बाज भाइयों मैं जहां भी गया हूं,
चाय की चुस्की का चौराहा मैनें जरुर बनाया है
वो दिल्ली में भी है, नोएडा में भी है, और अब मुंबई में भी
कभी आइए चाय की चुस्की लेने इस चौराहे पर। स्वागत है।
Friday, January 4, 2008
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