Sunday, December 20, 2009

और रिश्ता ख़त्म..

कुछ तुमने कहा
कुछ मैंने कहा
और जल उठी आग
सुलगने लगे ज़ज्बात
तुमने बुझाने की कोशिश नहीं की,
और संयोग से
मुझे भी पसंद है गरम चाय !

Wednesday, November 4, 2009

कौन है सच्चा राष्ट्र भक्त ?

१- क्या आप सच्चे राष्ट्रभक्त हैं ?
२- हाँ मै हूं ।
१- सुबूत ?
२- मतलब ?
१- इसका सुबूत क्या है ?
२- जी ..... जी मुझे अपने देश से प्यार है ।
१- और ?
२- और ............................................................................... कुछ नहीं ।
वास्तव में किसी का भी यह कहना की वो सच्चा देशभक्त है, बेमानी है । इसकी वजह मैं बाद में बताऊंगा। पर दिल्ली आने के बाद मुझे मालूम हुआ कि असली देशप्रेमी कोई और हो या न हो मगर विजय राष्ट्रभक्त शिरोमणि निसंदेह हैं।
याद कीजिये बीते मार्च का तमाशा। जब पूरा देश और सरकार रास्ट्रपिता महात्मा गाँधी की कुछ व्यक्तिगत निशानियों की नीलामी होते देख रहीं थी । विश्व भर का मीडिया इस बात पर नज़रें गडाये था कि देखें बापू का देश क्या करता है। देश की नाक खतरे में थी । ऐसे में विजय माल्या ने ही २७ मार्च २००९ को नीलामी में राष्ट्र का गौरव बचाया था।
इस घटना को राष्ट्र भक्ति के नज़रिए से देखने की दृष्टि मुझे दिल्ली के अपने कुछ मीडिया मित्रों के साथ बैठकी के दौरान मिली। जब मैं वहां पहुंचा तो देखा कि महफिल में सिर्फ विजय माल्या ब्रांड उत्पाद ही है। अपने ब्रांड की तड़प ने मुझे उकसाया तो पहले लिखे जा चुके सवालों से मेरा सामना हुआ। और मैं उनसे पराजित हो गया । क्योंकि सार्वजनिक नियमो की धज्जियाँ उड़ना, जैसे-यातायात पुलिस से बचने के लिए ५०-१०० की रिश्वत देना, सड़क किनारे लघु शंका का निवारण कर लेना, धूम्रपान करना, सार्वजनिक सम्पतियों को नष्ट होते देखते रहना और सबसे बड़े देशद्रोह कि बात यह कि किसी नागनाथ या सांपनाथ को वोट देना ( मजबूरी में ) ताकि वो हजारों करोड़ रूपये का घोटाला कर देश को खोखला करते रहें, आदि किसी सच्चे राष्ट्रभक्त के गुन नही हो सकते।
पर मुझे इस शर्मिंदगी से उबारते हुए मित्रों ने मुझे एक माल्या ब्रांड पटियाला दिया और कहा इसे पीते ही मैं एक राष्ट्रभक्त की भक्ति मे शामिल हो जाऊंगा। इस तरह मेरी देशभक्ति साबित हो जायेगी । मेरे पिए हर पैग के ज़रिये माल्या तक पहुचने वाला हर रुपया माल्या के हाथों को मजबूत करेगा। इस समय विजय माल्या से बढ़कर देशहित के बारे मे सोचने वाला और कोई नहीं लिहाजा पीते रहिये ( सिर्फ़ माल्या उत्पाद ) और देश के गौरव की रक्षा करने वाले हाथो को मजबूती प्रदान कीजिये।
उनके इस तर्क का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। उस दिन गुरु पर्व का ड्राई डे था । फिर भी देशभक्ति के नाम पर घंटों जाम टकराते रहे ।
धीरे धीरे राष्ट्रभक्ति प्रगाढ़ हो रही थी .....

सन्दर्भ के लिए लिंक
http://www.thaindian.com/newsportal/tag/york-auction


Sunday, August 30, 2009

महगाई के दोहे

महगाई ने ऐसा मारा की मिडिल वर्ग मार जाए
हे बनवारी मुरलीधारी मनमोहन लेव बचाय .

गोभी,भिंडी दाल तो अब सपनो मे दिखते हैं
आलू और टमाटर कभी कभी ही मिलते हैं.

शक्कर ने तो मध्यवर्ग का छोड़ दिया है साथ
इतने ऊँचे दम हुए की नही पहुँचता हाथ .

अभी तलाक़ मंदी ने मारा अब मार रही महगाई है
ये कैसा मौसम आया है ये कैसी शामत आई है .

मंदी ने नौकरी चीन ली अब महगाई लेगी जान
कुछ जतन करो हे दीनदयाला संसद के भगवान.

Monday, August 24, 2009





ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो ...
ऑफिस में खुश रहो, घर में खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

आज पनीर नहीं है , दाल में ही खुश रहो ...
आज जिम जाने का समय नहीं , दो कदम चल के ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो ...
घर जा नहीं सकते तो फ़ोन कर के ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


आज कोई नाराज़ है, उसके इस अंदाज़ में भी खुश रहो ...
जिसे देख नहीं सकते उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

जिसे पा नहीं सकते उसकी याद में ही खुश रहो
Laptop न मिला तो क्या , Desktop में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


बिता हुआ कल जा चूका है , उसकी मीठी यादों में ही खुश रहो ...
आने वाले पल का पता नहीं ... सपनो में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


हँसते हँसते ये पल बिताएँगे, आज में ही खुश रहो
ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो
अनदेखी अनजानी सी
मधुर कल्पनाओं की सरिता में
तब बहते जाना
कितना अच्छा लगता था
कोलाहल से दूर कहीं
सूनी सड़कों पर उस धुंधली सी संध्या में
वो साथ तुम्हारा
कितना अच्छा लगता था
उन कम्पित अधरों को
मै जब छूने की कोशिश करता था
तब प्रतिवाद तुम्हारा
कितना अच्छा लगता था
किन्तु अब?........
यथार्थ के तिमिर कूप में
उन मधुर छनो की
केवल अनुजूंग ही शेष है
हाँ, बस स्मृति शेष है
१९९० से पहले लिखी रचनाओं में से एक...............
मौत नहीं है हल सपनो का,
माना टूटा बल अपनों का.
फिर भी हम मर जाएँ कैसे,
खुद की लाश जलायें कैसे?

सपनो के टूटे पंखों से,
अपनों के विरह मनको से.
नीड़ भला सजायें कैसे,
सोते न जग जाएँ कैसे?

फिर भी उसकी किसी छवि को,
उसके नयनो के अमित रवि को,
खुद में हम झुठलायें कैसे?
कैसे ना जी जाएँ ऐसे?

नीड़ का अपने तिनका टूटा,
सबसे प्रियतम साथी छूटा.
राह पलट पर जाएँ कैसे,
उसके सपने झुठलायें कैसे?
आखिर हम मर जाएँ कैसे,
खुद की लाश जलाएं कैसे?

Friday, August 14, 2009

Monday, July 27, 2009

ऐसी आज़ादी और कहाँ..?

ऐसी आज़ादी और कहाँ..?
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में दिए उस फैसले का सबने स्वागत किया हैं जिसमे समलैंगिकता से संबंधित धारा '३७७' को हटाने के दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिए हैं...अब भारतीय संस्कृति पर एक बदनुमा दाग लग जायेगा क्योंकि 'ऐसी आज़ादी और कहा' ..जी हाँ...! होमोसेक्सुँलिटी में प्रयोग किये जाने वाले हर शब्द का मतलब ही कुछ और निकल रहा हैं ...'गे' शब्द की परिभाषा अब पूरी तरह से आम भाषा में खुलेआम प्रयोग की जाने लगी हैं..अगर आप किसी से पूछेंगे की मेरे साथ चलोगे तो यानि सामने वाला भौचक रहे जायेगा की वोह उसे चलो और गे दोनों ही कह रहा हैं..आंखिर अब खुलकर होमोसेक्सुँल्स सामने आ रहे हैं ...! दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद जैसे सबको खुली आज़ादी मिल गयी हो..हर चीज में गे शब्द का प्रयोग जैसे चलो गे , मिलो गे या तमाम वोह शब्द जिसमे आखिरी में गे शब्द लगता हैं....अब इस गे शब्द को हर आदमी खुल कर समाज में बोलने लगा हैं हैं क्योंकि इस बात की इजाज़त तो आंखिर उन्हें कानून ने ही दी हैं ...खुलकर समाज के सामने यह मानना की अब वोह पूरी तरह से आजाद हैं हर वोह काम करने के लिए जिसके लिए वोह पहले दस बार सोचते थे...चाहे वोह दिल्ली की सड़को पर खुलेआम एक दुसरे का हाथ पकड़ कर समाज को यह दिखाना की अब वोह गे संस्कृति को अपनायेगे ..! गे शब्द की जो परिभाषा थी वोह अब पूरी तरह से बदल चुकी हैं....लेकिन विदेशी संस्कृति को अपनाने वालो ने यह भी नहीं सोचा की इसका परिणाम क्या होगा...! लेकिन सवाल यहाँ उठता हैं की आंखिर इस बात की इजाज़त भी तो हमारे भारतीय कानून ने ही उन्हें दी हैं.. ! अभी भी कटघरे में कई ऐसे सवाल खड़े हैं जिसका जवाब किसी के पास नहीं हैं .....! जरुरत हैं तो सिर्फ सोचने की जो हम कर रहे हैं क्या वोह सही हैं.....?

Saturday, July 25, 2009

लिखिए भाई लिखिए भाई

लिखिए भाई लिखिए भाई

पीपल पेड़ पुराना लिखिए,
गांव का एक ज़माना लिखिए।
भौजाई का ताना लिखिए,
देवर का गुर्राना लिखिए ।
नाना का वो गाना लिखिए
नानी का शर्माना लिखिए ।
अपना कोई फसाना लिखिए
बीवी से घबराना लिखिए ।
देश का ताना बाना लिखिए,
देश की जान बचाना लिखिए ।
धूप में पांव जलाना लिखिए,
बारिश में नहाना लिखिए ।
कागज़ की नाव बनाना लिखिए,
बारिश में उसे बहाना लिखिए।
आना लिखिए जाना लिखिए,
हरकत कोई बचकाना लिखिए.।
मुलायम का साथी लिखिए,
मायावती का हाथी लिखिए।
कांग्रेस का पंजा लिखिए
कमल का कसा शिकंजा लिखिए।
समय का अत्याचार भी लिखिए,
टूटते घर परिवार भी लिखिए।
महंगाई की मार भी लिखिए,
बढ़ते बेरोज़गार भी लिखिए।

Monday, July 20, 2009

अजय राय पुरस्कृत


चाय बैठकी के बैठकबाज अजय राय को आर्थिक पत्रकारिता में उनके उल्लेख नीय योगदान के लिए बनारस बीड्स आर्थिक पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । पुरस्कार के लिए देश भर से तीन लोगों का चयन हुआ है अजय के अतिरिक्त प्रसिद्द आर्थिक पत्रकार संजय पुगुलिया और नागेन्द्र पाठक पुरस्कृत हुए हैं । चयन समिति में प्रख्यात विद्वान अच्युता नन्द मिश्रा ,पत्रकार आलोक मेहता आदि शामिल थे। अजय अमर उजाला बनारस में कार्यरत हैं और चाय बैठकी की संकल्पना और संचालन में साझीदार हैं। अजय को जल्द ही होने वाले पुरस्कार वितरण समारोह में ११००० की धन राशि और प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया जायेगा । अजय की लेखनी ने संगीत ,धर्म ,संस्कृति आदि विभिन्न विषयों पर लगातार सुंदरतम लिखा है पर आर्थिक विषयों पर उनकी इस पकड़ से कम ही लोग परिचित थे । उनकी इस उपलब्धि पर पूरे चाय बैठकी परिवार की ओर से बहुत बधाइयाँ .....

Monday, June 29, 2009

एक पैर का नाच...


शहर के बीच चौराहे की फुटपाथ पर जमा थी भीड़ चल रहा था एक पैर का नाच

लोग टकटकी लगाये देख रहे थे उस सोलह साल की लड़की को

जो फिल्मी धुन पर दिखा रही थी एक पैर का नाच

नाच का ये तमाशा दिखा रही लड़की बहुत सुन्दर थी

किसी गांव की गोरी की तरह

घुंघरुओं की छनक के साथ धड़क रहा था

वहां पर खड़े कितने नौजवानों का दिल

जिनकी नजर पैरों पर कम....उसके गदराये जिस्म पर टिकी थी

एक पैर के इस नाच पर खूब वाहवाही भी मिल रही थी

और तालियां भी बज रही थी

बीच बीच में आवाज भी आ रही थी..

जियो छम्मक छल्लो...

पूरे एक घंटे बाद नाच बंद हो गया

कितने लोगों के हाथ अपने अपने जेब में गये

जिनकी जेब से सिक्के निकले उन्होंने जमीन पर बिछे कपड़े पर उछाल दिए

जिनकी जेब से नोट निकली वो कुछ सोचने के बाद आगे बढ़ गये।

सब लोगों के जाने तक मैं वहां खड़ा रहा

मैंने उस लड़की से पूछा

तुम्हारा पैर कैसे कट गया

उस लड़की की आंखे नम हो गई

उसने मेरी तरफ देखा कुछ देर बाद बोली

एक ट्रेन एक्सीडेंट में मेरे मां बाप मर गये है

और मेरा पैर कट गया

वो रोने लगी थी

ढाढस के दो शब्द मैंने भी बोले थे

कुछ फुटकर सिक्के मैंने भी दिये

और आगे बढ़ चला।

Friday, May 22, 2009

Monday, May 18, 2009

big foot

गोवा बीच..........

Wednesday, May 13, 2009

still life in fast train

मुंबई लोकल ट्रेन.....................

Wednesday, May 6, 2009

baby with train

मुंबई लोकल ट्रेन..............

Thursday, April 9, 2009

Flag wants freedom

मेरे कैमरे की नजरों से.............................................

Thursday, April 2, 2009

गरीब इस देश में बस वोट है मुद्दा नहीं

बीजेपी का घोषणापत्र अब तक जारी नहीं हुआ है। लेकिन, ये कांग्रेस दो हाथ आगे दिखेगा। आखिर घोषणापत्र होता तो सिर्फ कहने के लिए ही होता है। इसलिए कांग्रेस ने पहले जो कहा उससे कुछ आगे तो बीजेपी वालों को कहना ही होगा। बानगी दिख गई है- गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आडवाणी के लोकसभा क्षेत्र गांधीनगर में पहली चुनावी रैली में ही ये कह गए कि चावल 2 रुपए किलो मिलेगा।



नरेंद्र मोदी का 2 रुपए किलो चावल/गेहूं का फॉर्मूला शायद ही गुजरात में ज्यादा असर करता हो। लेकिन, देश भर में तो जमकर असर करता ही है। गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान राजकोट से 22 किलोमीटर दूर एक गांव राजसमढियाला गया। इस गांव की सालाना कमाई है करीब पांच करोड़ रुपए। 350 परिवारों वाले इस गांव के ज्यादातर लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन खेती ही है। लेकिन, इस गांव की कई ऐसी खासियत हैं जिसके बाद शहर में रहने वाले भी इनके सामने पानी भरते नजर आएं। 2003 में ही इस गांव की सारी सड़कें कंक्रीट की बन गईं। 350 परिवारों के गांव में करीब 30 कारें हैं तो, 400 मोटरसाइकिल।



इस गांव में कांग्रेस के 3 रुपए किलो और नरेंद्र मोदी के 2 रुपए किलो चावल का कोई खरीदार नहीं है। और, इस गांव में न तो गरीबी मुद्दा है न वोट बैंक है। क्योंकि, गांव में अब कोई परिवार गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। इस गांव की गरीबी रेखा भी सरकारी गरीबी रेखा से इतना ऊपर है कि वो अमीर है। सरकारी गरीबी रेखा साल के साढ़े बारह हजार रुपए कमाने वालों की है। जबकि, राजकोट के इस गांव में एक लाख रुपए से कम कमाने वाला परिवार गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है।



गांव में विकास के नाम पर नेता वोट मांगने से डरते हैं। विकास में ये सरकारों की भागीदारी अच्छे से लेते हैं। यही वजह है कि चुनावों के समय भी इस गांव में कोई भी चुनावी माहौल नजर नहीं आता। न किसी पार्टी का झंडा न बैनर। गांव बाद में एक साथ बैठकर तय करते हैं कि वोट किसे करना है। लेकिन, जागरुक इतने कि अगर किसी ने वोट नहीं डाला तो, पांच सौ रुपए का जुर्माना भी है।



लेकिन, ये तो गुजरात के एक गांव की अपनी इच्छाशक्ति है कि वहां गरीब नहीं है और गरीबी मुद्दा नहीं है इसलिए गरीबों का वोटबैंक भी नहीं है। लेकिन, पूरे देश में गरीबों का ये वोटबैंक- जाति, धर्म, कम्युनल, सेक्युलर सबसे ज्यादा बड़ा है और आसानी से पकड़ में भी आ जाता है। दरअसल ये 2 रुपए-3 रुपए किलो चावल/गेहूं सरकारी खजाने को भले ही जमकर चोट पहुंचाता हो और जिनको ये दिया जाता है उन लोगों को अगले चुनाव तक फिर उसी हाल में रहने का आधार तैयार कर देता है कि वो तथाकथित सरकारी गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवार यानी BPL परिवारों में शामिल रहें। इस तरह के एलानों से वोट थोक में मिलते हैं और चुनाव के बाद चूंकि इन BPL परिवारों की चर्चा न तो मीडिया में होती है न तो, राजनीतिक पार्टियों में तो, कोई अलोकप्रिय होने का खतरा भी नहीं होता है।


कांग्रेस तो, पिछले करीब 35 सालों से हर चुनावी घोषणापत्र में गरीबी हटाने की बात कर रही है। कांग्रेस है तो, गांधी परिवार की विरासत कैसे भूल सकती है। इंदिरा गांधी को गरीबी हटाओ के नारे ने ही प्रधानमंत्री बना दिया था। इसलिए कांग्रेस के घोषणापत्र पर हाय गरीब-हाय गरीबी हावी हो गई। कांग्रेस ने कहा कि उनकी सरकार बनती है तो, गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को 3 रुपए किलो गेहूं, चावल दिया जाएगा। यानी देश पर सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस ने लगे हाथ ये मान लिया कि गरीबी की रेखा के नीचे इतने लोग हैं कि वो, वोट देकर उसे चुनाव जिता सकते हैं वो, भी सिर्फ तीन किलो चावल-गेहूं के लिए।



कांग्रेस एक फूड सिक्योरिटी एक्ट की भी बात कर रही है जिसमें सबको खाना देने का वादा है। इसके लिए नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट बनेगा। कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना उसकी सबसे बड़ी यूएसपी है। इसीलिए वो, नरेगा योजना में लोगों को 100 दिन रोजगार के साथ 20 रुपए ज्यादा रोजाना की मजूरी यानी 100 रुपए की मजूरी का भी पक्का वादा कर रही है। जाहिर है ये फूड सिक्योरिटी एक्ट से खाना, नरेगा की मजदूरी वही लोग करेंगे जिनका जीवनस्तर आजादी के 62 सालों बाद भी इस लायक नहीं हो पाया है कि वो अपने अगल-बगल खुले चमकते डिपार्टमेंटल स्टोरों, मॉल से खरीदारी न कर सकें।



रहमान की जय हो धुन को जब ऑस्कर सम्मान मिला तो, कांग्रेस को लगा कि इससे बेहतर स्लोगन चुनाव जीतने के लिए हो ही नहीं सकता। आखिर, ये धुन तो दुनिया जीतकर लौटी है तो, इसके बूते कांग्रेस को देश का राज जीतने में भला क्यों मुश्किल होगी। लेकिन, स्लमडॉग मिलिनेयर फिल्म के बच्चों से मिलने की तस्वीरें जब टीवी चैनलों पर झुग्गी वाले भारत की कहानी दिखाने लगीं तो, कांग्रेस को लगा शायद थोड़ी गलती हो गई है। तब से कांग्रेस ने जय हो गाने की धुन जरा धीमी कर दी है।


कांग्रेस कह रही है कि उसका राज आया तो, सबको शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी। महंगाई कम करने और तेज विकास का वादा भी किया गया है। छोटे उद्योगों को मदद दी जाएगी। नौजवान बेरोजगार नहीं रहेगा इसका भी भरोसा दिलाने की कोशिश है।

सोनिया के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषण दे रहे हैं कि देश से गरीबी हटाने में अभी 15-20 साल लगेंगे। यानी अगले करीब चार लोकसभा चुनावों तक चुनावी घोषणापत्रों में सस्ते गेहूं-चावल और 100 रुपए की मजूरी पर जनता को लुभाया जाता रहेगा। क्योंकि, दुनिया के अमीरों में हमारे अमीरों के जब और आगे बढ़ने की खबर आती है तो, दूसरी सच्चाई जो थोड़ा धीरे से सुनाई जाती है जिससे फीलगुड कम न हो वो, ये है कि भारत की एक बड़ी आबादी अभी रोजाना एक बिसलेरी की बोतल यानी 20 रुपए से भी कम में गुजारा करती है।

मुद्दों की बात होती है तो, किसी भी सर्वे में अब गरीबी जैसा मुद्दा होता-दिखता ही नहीं है। लेकिन, दरअसल ये गरीब और गरीबी इस देश का सबसे बड़ा वोटबैंक है जो, चुनावों तक पार्टियों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा होता है। लेकिन, जैसे ही वोट बैलट बॉक्स में गए गरीबों की किस्मत और उनकी चर्चा भी अगले चुनाव तक ताले में ही चली जाती है। भारतीय लोकतंत्र में गरीबों का वोट जय हो। चुनाव तक गरीबों की भी जय हो ...

Wednesday, March 25, 2009

बड़े किसानों को राहत, केद्र सरकार ने तोड़ी आचार संहिता

न कोई विज्ञप्ति, न कोई सार्वजनिक घोषणा। रिजर्व बैंक ने चुपचाप एक अधिसूचना जारी कर यूपीए सरकार की सर्वाधिक लोकलुभावन किसानों की कर्जमाफी योजना में नई राहत दे दी। वह भी उन किसानों को जिनके पास दो हेक्टेयर या पांच एकड़ से ज्यादा जमीन है। कर्जमाफी योजना के तहत इन किसानों को बकाया कर्ज में एकल समायोजन (वन टाइम सेटलमेंट) के तहत 25 फीसदी छूट देने का प्रावधान है, बशर्ते ये लोग बाकी 75 फीसदी कर्ज तीन किश्तों में अदा कर देते हैं।

पांच एकड़ से ज्यादा जोत वाले इन किसानों को बकाया कर्ज की पहली किश्त 30 सितंबर 2008 तक, दूसरी किश्त 31 मार्च 2009 तक और तीसरी किश्त 30 जून 2009 तक चुकानी है। लेकिन रिजर्व बैंक ने दूसरी किश्त की अंतिम तिथि से आठ दिन पहले सोमवार को अधिसूचना जारी कर पहली किश्त को भी अदा करने की तिथि बढ़ाकर 31 मार्च 2009 कर दी है। दिलचस्प बात यह है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक तिथि को आगे बढ़ाने का फैसला भारत सरकार का है। जाहिर है, इससे सीधे-सीधे देश के उन सारे बड़े किसानों को फायदा मिलेगा, जिन्होंने अभी तक पहली किश्त नहीं जमा की है।

2 मार्च को आम चुनावों की तिथि की घोषणा हो जाने के बाद देश में आचार संहिता लागू हो चुकी है। ऐसे में रिजर्व बैंक या किसी भी सरकारी संस्था की ऐसी घोषणा को आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा जो आबादी के बड़े हिस्से को नया लाभ पहुंचाती हो। शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत कहते हैं कि साढ़े पांच महीने से केंद्र सरकार सोई हुई थी क्या? चुनावों की तिथि घोषित हो जाने के बाद वित्त मंत्रालय की पहले पर की गई यह घोषणा सरासर आचार संहिता का उल्लंघन है। आदित्य बिड़ला समूह के प्रमुख अर्थशास्त्री अजित रानाडे कहते है कि वैसे तो रिजर्व बैंक एक स्वायत्त संस्था है। लेकिन चूंकि अधिसूचना में भारत सरकार के फैसले का जिक्र किया गया है, इसलिए यकीनन यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है।

असल में केंद्र सरकार की कर्ज माफी योजना के तहत पांच एकड़ से कम जमीन वाले लघु व सीमांत किसानों को 31 मार्च 1997 के बाद 31 मार्च 2007 तक वितरित और 31 दिसंबर 2007 को बकाया व 29 फरवरी 2008 तक न चुकाए गए सारे बैंक कर्ज माफ कर दिए थे। लेकिन पांच एकड़ से ज्यादा जोतवाले किसानों को कर्ज में 25 फीसदी की राहत दी गई थी। इस कर्ज की रकम की व्याख्या ऐसी है कि इसकी सीमा में ऐसे किसानों के सारे कर्ज आ सकते हैं। वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक इन किसानों के लिए कर्ज छूट की रकम या 20,000 रुपए में से जो भी ज्यादा होगा, उसका 25 फीसदी हिस्सा माफ कर दिया जाएगा। लेकिन यह माफी तब मिलेगी, जब ये किसान अपने हिस्से का 75 फीसदी कर्ज चुका देंगे। इसकी भरपाई बैंकों को केंद्र सरकार की तरफ से की जाएगी। दूसरे शब्दों में 30 जून 2009 तक बड़े किसानों द्वारा कर्ज की 75 फीसदी रकम दे दिए जाने के बाद उस कर्ज का बाकी 25 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार बैंकों को दे देगी।

रिजर्व बैंक ने सोमवार, 23 मार्च को जारी अधिसूचना में कहा है कि समयसीमा केवल 31 मार्च तक बकाया किश्तों के लिए बढ़ाई गई है और तीसरी व अतिम किश्त के लिए निर्धारित 30 जून 2009 की समयसीमा में कोई तब्दीली नहीं की गई है। तब तक अदायगी न होने पर बैंकों को ऐसे कर्ज को एनपीए में डाल देना होगा और उसके मुताबिक अपने खातों में प्रावधान करना होगा।

Monday, March 23, 2009

पत्थर

एक बस तुही नहीं जिससे खफा हो बैठा हमने जो संग तराशे वो खुदा बन बैठे ।
पाँच साल बाद ,
अबकी पूरे पाँच साल बाद,
मदारी और मजमे बाज कचहरी (जनता की) में आ गए हैं ।
सबने पिटारी झोली फैला दी है।
एक मदारी कह रहा है .... जमूरे का पेट फाड़ देगा, सर धड अलग कर देगा । उसके हाथ में चाकू है। फ़िर भी हाथ जोड़े खड़ा है। इशारा पेट की और कर रहा है बार -बार। कुछ देने पर दुआ देगा । कुछ नही देने पर ?
दूसरा ............खेल दिखने के बाद ताबीज दे रहा है । मुफ्त देने लगा तो सब मँगाने लगे । फिर सौ रुपये मांगने लगा। कई लोगों ने दिया । सबको दिलदार कहा और रुपये लौटा दिया । फिर बोला सौ नहीं तो दस निकालो, हराम में मिल रहा था तो हजार हाथ बढ़ गए थे । अब क्यों ठंडे हो गए । मौके पर ठंडे पड़ गए तो बीवी चली जायेगी कहीं और । और फ़िर ताबीज की मांग बढ़ गयी।
संपेरा पिछली बार भी आया था । सबको जडी दे गया था । बोल गया था कि सांप, बिच्छू कटाने पर लगना फायदा मिलेगा । जहर तुंरत उतर जाएगा । एक ने शिकायत की । कहा जडी बेकार निकली । उसने पुछा बाएं कटा के दायें। जवाब मिला लघु शंका के समय बीच में काट गया था । सपेरा बोला मैंने कहा था बाएं कटे तो दायें लगना और दायें काटे तो ...... । पर उसको तो बीच में ..... । सपेरा फुफकार उवाच ..... पढ़े लिखे मूर्ख हो बाबू .....मन किया था गुरु ने .....ऐसे लोगों को जडी देने के लिए । माफ़ करना ( ऊपर देखते हुए )। फिर साँप का खेल दिखने लगा । इस बार भी आखिरी पिटारा खोलने से पहले जडी बाटने लगा।







Sunday, March 22, 2009

आख़िर हर बार धर्म के नाम पर ही क्यों...

"यह तो नहीं कहा की बिना मतलब हाथ काट देंगे, अगर किसी का हाथ हिन्दुओं पर उठता है तो ज़रूर हाथ काट डाले जाने चाहिए। इसमें गलत क्या है? हां, हम पहल ज़रूर अपनी तरफ से नहीं करेंगे। पर क्या हमें जवाबी कार्यवाही का भी हक नहीं है?"

यह वोह कमेन्ट है जो भेजा गया। इन लाइनों को लिखने से पहले ये तो सोचना चाहिए की अभी तक निशाना कौन बने? आंध्र प्रदेश मैं क्रिशच्यानो को जिन्दा जला दिया जाता है तो कोई बदला नही लिया जाता। गुजरात में मुसलमानों को काट दिया गया तब कोई हाथ नही काटा। तो अब यह धमकी किसके लिए है। जब भी हमले हुए मुसलमानों का नाम आया। लेकिन मालेगाओं के नाम पर खामोश क्यों है..

Wednesday, March 18, 2009

हे राम से...जय श्री राम

चुनाव आते ही
चुनावी रंग मैं पटा देश
कहीं राम का नाम
तो कहीं राम से ही परहेज
इन सबकर बीच झूलत
गांधी का देश है
अहिंसा का पाठ पढाने वाले का
यह दूसरा रूप है
गोली खाके भी जिसके मुंह से
हे राम है
उसी की संतान
हाथ काट देने की बात कह
बोलती जय श्री राम है...

Monday, February 16, 2009

मोहिनिश के liye

अच्छा लगा की मोहनीश की लेखनी दिनोदिन सुधरती जा रही हें। क्या ये ही ज़िन्दगी हैं । गद्य कम पद्य ज़्यादा हैं। कविता के सुर जब एक पत्रकार की लेखनी से निकलते हैं तो कुछ ऐसे ही की उम्मीद की जाती हैं। अच्छा है , बहुत अच्छा है। जारी रक्खो। शुभकामनाएं।

Manwa re...


Tuesday, January 13, 2009

महानायक की दरियादिली

अमिताभ बच्चन सदी के महानायक हैंउन्होंने हवाई जहाज में सैनिकों को खाना खिलाया थाइस पर पचास डालर खर्च किएऐसा इसलिए किया कि सैनिकों को जहाज में बिकने वाला खाना महंगा लगासदी के महानायक को देख कर लोग रुपये लुटते हैंगरीब लोग जो पांच डालर (ढाई सौ रुपये) का खाना नहीं खरीद सकते उन्होंने ही दिन भर कि कमाई `लावारिश' के लिए लुटा कर अमिताभ को बनाया हैख़ुद जहाज सर पर से गुजरते देखते हैं लेकिन उनको जहाज पर उड़ने लायक बनायापर अमिताभ कोJustify Full कम खर्ची सोचना अच्छा नहीं लगतावो सनिकों के लिए खाना माँगा देते हैंदरियादिली देखिये २५०० रूपये खट खर्च डालेखर्च तो कर ही डाले ब्लॉग पर लिख भी दिया ताकि दुनिया दरियादिली से वाकिफ हो जाए
प्रयाग कुम्भ या माघ मेले में रोज अन्न क्षेत्र चलते हैंअमिताभ ने बचपन में देखा होगाकभी इसमें खाया भी होगाकभी मन तेजी बच्चन के साथ गुरुद्वारा गए होंगे तो गुरु का प्रसाद जीमा होगासंतों के भंडारे में तो हर आने वाले को प्रसाद के साथ दक्षिणा भी दी जाती हैकहाँ से आता है सबयह किसी ब्लॉग पर नहीं मिलेगा
पर अमिताभ के पास ब्लॉग हैवह लिख सकते हैंलोग उसे पढ़ते हैंवह सदी के महानायक हैंइसलिए वो हर बात लिखते हैंछोटी-छोटी बातें लिखते हैं


Friday, January 2, 2009

कब आओगे भागीरथी

कोई मंदिर बनता है कोई मस्जिद गिराता हैकोई सियासत तो कोई पैसा कमाता है,मगर अयोध्या आज भी बदहाल दिखती हैभागीरथी बनके कोई क्यों नहीं गंगा बहता है,