रेत रीतती है तो
कराती है
समय की पहचान
मुट्ठी से रेत के
रीतने पर कभी सोचा अपने
क़ि कितना वक़्त फिसल गया
यूँही मुट्ठी में रेत, मिटटी
सहेजने में।
उँगलियों के पोरों के फासले से
कितनी रेत फिसल गई
घंटा, मिनट, सेकेण्ड बन।
काश क़ि
सहेजना छोड़
तानना सीख़ जाते इसे
सीख जाते हवा में लहराना
टूटते तब भी
पर एह्स्सास नहीं होता
क़ि रीत गयी उम्र रेत की मानिंद
रेतघड़ी बन
Friday, October 28, 2011
सो क्या जाने पीर पराई
यह पोस्ट दरअसल एक सफाई है। कवि रामाज्ञ शशिधर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुए काव्य विमर्श की रपट अपने ब्लॉग अस्सीचौराहा पर `कविता से पहले कवियों को दीमक हवाले करें ` शीर्षक से लिखी थी। साहित्य जगत में इसकी खूब हलचल मची थी। उसका जवाब मैंने इस तरह दिया। अच्छा लगा अच्छी बात वर्ना आत्मरति कवियों को ठेस भी लगी, ऐसा बताते हैं।
यह पोस्ट दरअसल एक सफाई है। कवि रामाज्ञ शशिधर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुए काव्य विमर्श की रपट अपने ब्लॉग अस्सीचौराहा पर `कविता से पहले कवियों को दीमक हवाले करें ` शीर्षक से लिखी थी। साहित्य जगत में इसकी खूब हलचल मची थी। उसका जवाब मैंने इस तरह दिया। अच्छा लगा अच्छी बात वर्ना आत्मरति कवियों को ठेस भी लगी, ऐसा बताते हैं।
Friday, October 14, 2011
सावधान !
सावधान !
सावधान हो जाओ भ्रष्टाचार के दुश्मनों
तुम्हारे खिलाफ बुन लिया गया है
मुसीबतों का जाल
बिछा दी गई है चौरस की बिसात
वो आएंगे
मुसलमान बन के
और हमला करेंगे तुम्हारे हौसलों पर
वो फिर आएंगे
इस बार हिंदू का लबादा ओढ़कर
चैंबर में घुसकर पीटेंगे तुम्हें
लेकिन तुम डरना मत
सिर्फ कोशिश करना पहचानने की
ये न हिंदू हैं न मुसलमान हैं
इंसानी शक्ल में ये हैवान हैं शैतान हैं बेइमान हैं....
सावधान हो जाओ भ्रष्टाचार के दुश्मनों
तुम्हारे खिलाफ बुन लिया गया है
मुसीबतों का जाल
बिछा दी गई है चौरस की बिसात
वो आएंगे
मुसलमान बन के
और हमला करेंगे तुम्हारे हौसलों पर
वो फिर आएंगे
इस बार हिंदू का लबादा ओढ़कर
चैंबर में घुसकर पीटेंगे तुम्हें
लेकिन तुम डरना मत
सिर्फ कोशिश करना पहचानने की
ये न हिंदू हैं न मुसलमान हैं
इंसानी शक्ल में ये हैवान हैं शैतान हैं बेइमान हैं....
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