Monday, February 16, 2009

मोहिनिश के liye

अच्छा लगा की मोहनीश की लेखनी दिनोदिन सुधरती जा रही हें। क्या ये ही ज़िन्दगी हैं । गद्य कम पद्य ज़्यादा हैं। कविता के सुर जब एक पत्रकार की लेखनी से निकलते हैं तो कुछ ऐसे ही की उम्मीद की जाती हैं। अच्छा है , बहुत अच्छा है। जारी रक्खो। शुभकामनाएं।

Manwa re...