Wednesday, January 30, 2008
sab kuch swikaar...namaskaar, vyavhaar, pratikaar.....
kulmila ke maamla ye ki bhaiya thand maharaj kuch raham karo aur agar ruke hau to unke aane tak ruke hi rahau..
aap logon ke aashirwaad ka aakanchi......ab to ham dono hi ....
Sunday, January 27, 2008
Saturday, January 26, 2008
AGALI BAAR LENAA
pdma purskar videshiyon ka ho gaya. sonia ko mayake walon se naari sulabh prem hai. isliye use liya nahin. raajdeep, barkha angreji bolate hain. vinod dua desh kha rahe hain. inko mila theek hua. ham baad main lenge.
Thursday, January 24, 2008
ki हम भी जुड़ ही गए
शुभकामनाएं ....
चाय बैठकी के साथी अभिमन्यु शर्मा १९ जनवरी को विवाह बन्धन में बंध गए ...पूरी चाय बैठकी कि टीम कि तरफ से उनके सुखी दाम्पत्य जीवन शुभ कामनाएं ....
परम्परा विवाह को बन्धन कहने कि है ...सो भैया बन्धन मुबारक ...जल्दी भौजी के साथ चाय बैठकी माँ आयो..
Wednesday, January 23, 2008
बिदक गई ख़बर....
जी हां वही ब्रूनी जो भारत दौरे से पहले ही मीडिया के लिए गर्मागर्म खबर बन गईं थीं। चैनल और अखबार उस गर्माहट का ताप भी महसूस कराने लगे थे। दरअसल फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सर्कोजी गणतंत्र दिवस के दिन भारत के खास मेहमान हैं।
विशिष्ट अतिथि के तौर पर आ रहे निकोलस के साथ उनकी महिला मित्र कार्ला ब्रूनी के भी भारत आने की संभावना थी, क्योंकि राष्ट्रपति महोदय का इश्क इस कदर परवान चढ़ चुका है कि हर वक्त ब्रूनी और वो साथ ही देखे जाते हैं ऐसे में दोनो के साथ भारत आने की भी उम्मीदें थी लेकिन एक सवाल इन उम्मीदों के आड़े आ रह था वो था...प्रोटोकॉल।
सियासत से वास्ता रखने वालों को शायद ये सवाल उतना परेशान नहीं कर रहा था जितना बिरादरी के बंधुओं को। वजह साफ है दौरे के दौरान ब्रूनी की मौजूदगी खबरनवीशों को अभी से ठंढ़ी में गर्मी का अहसास देने लगी थी, वो तो खबर को इस तरह दुहने में जुटे की अधिकारियों को भी पसीने छूटने लगे उन्होंने भी मसला जल्दी सुलझाने के लिए मानो दबाव बनाना शुरू कर दिया ताकि दौरे के बाद उन्हें प्रोटोकॉल में हुई चूक का तकाज़ा देकर बधिया न किया जा सके।
नतीजा अब खूबसूरत मॉडल ब्रूनी राष्ट्रपति निकोलस के साथ भारत नहीं आ रही हैं।
पन्हाय से पहिले दुहै का नतीजा अब सामने है, बिचक गई न (ख़बर) अब बाल्टी लिए बैठे न रहो आग बारौ हाथ सेंकौ.....साथ मा चार कट के ऑडर भी कै देव दिगाव और धुंआ उड़ाव, तबौ गर्मी न आवै तौ नीचे परोसी गई तस्वीरन पर एक बार फिर से नज़र डाल लेव।.....जिंदाबाद।
Tuesday, January 22, 2008
बधाई अभिमन्यु को
सुनील कैथवास
बांधो न नाव इस ठांव बंधु....
कविता के मूल भाव से थोड़ा इतर जाएं तो ये ठांव बन जाता है शहर इलाहाबाद जहां देश के किसी कोने से आया व्यक्ति 'इलाहाबादी' लफ़्ज की समष्टि ही जीना चाहता है।इसके लिए चाहे कितनी ही जहालत झेलनी पड़े। खटास की लार से मुंह भर जाए तो भी थूकने के बजाए गटक जाना ही बेहतर समझा जाता है।
हालिया दिनों में नया ज्ञानोदय पत्रिका में छपे संपादकीय लेख को लेकर एक इलाहाबादी वरिष्ठ साहित्यकार (प्रकाशन भी है) ने संपादक पर बेलाग निशाना साधा। सोचा था प्रतिक्रिया स्वरूप लिखे लेख में खूब मसाला मिलेगा पर ऐसा हो नही पाया वजह वही कि वो भी ठहरे गंगा किनारे के वो भी तेलियरगंज की गंगा। संपादक जी को बखूब आता था कब चुप्पी साधनी है और कब हल्ला मचाना।
हालांकि उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में काफी पहले हुई एक बहुचर्चित फोटोग्राफी चित्र प्रदर्शनी के दौरान काटे गए बवाल के बाद शहर में ही हुई एक गोष्ठी में संपादक जी ने एक वरिष्ठ खांटी इलाहाबादी पत्रकार छायाकार प्रदीप सौरभ जी को चेताया था कि 'इस शहर (इलाहाबाद) में स्पीड ब्रेकर बहुत हैं, गाड़ी ज्यादा रफ्तार से दौड़ाने पर पटखनी तय है' , पर संपादक जी को इलाहाबाद छोड़े लंबा अर्सा बीत चुका था। अब दिल्ली में थे सो संपादकीय में जोखिम ले बैठे। इलाहाबादी पुरोधा के लिए तो मानो छींका टूटा, फुफकारता जवाबी लेख तैयार था। पर संपादक जी खतरा भांप चुके थे सो दो महीने की चुप्पी से पूरे बखेड़े की हवा निकाल गए।
वैसे तो मामला काफी पुराना है लेकिन लाश मा सांस फूकै बदे बेताब बैठकबाजन के लिए का पुराना का नया सुट्टा के साथ कट होए फिर तो आजू-बाजू धत्त-धत्त और दूसरे दिन ताज़ा मामला तैयार। दुई सुट्टा दिगै भरै का है अब चलत हई....जिंदाबाद।
Friday, January 18, 2008
स्वागत....
चाय बैठकी कि टीम में शामिल नए सदस्यों से आपका परिचय करा दूं ...
हमारा आमंत्रण स्वीकार कर आदरणीय अनिल रघुराज जी हमारे साथ आ गए हैं .आप स्टार न्यूज़ मुम्बई से जुडे हैं.हम टीम कि तरफ से उनका स्वागत करते हैं.आप इलाहाबाद विश्व विद्यालय से भी जुडे रहे हैं इस नाते हमारे सीनियर भी हुए . छात्रावास कि परम्परा के मुताबिक जम कर चाय ,बन खाइए बिल सर के मत्थे ...
बैठकी कि टीम में आई नेक्स्ट मेरठ से जुडे अनुराग शुक्ल भी शामिल हो गए हैं ,वो अपने को आंशिक इलाहाबादी कहते हैं ...पर हम उन्हें पूरा इलाहाबादी मानते हैं क्यों कि इलाहाबादकि साहित्यिक परम्परा को कायम रखते हुए उनकी कहानी लव स्टोरी वाया फ्लैश बैक " ने कथा देश पत्रिका कि कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है ...
भाई सुनील कैथ्वास और संजय कनोजिया से तो आप परिचित ही हैं ...एक ने आई नेक्स्ट तो दुसरे ने पी टी आई और इंडियन एक्सप्रेस में अपनी तस्वीरों से झंडे गाडे हैं ...कलम से कोम्पोजिशन के उनके हुनर से आप बैठकी में जल्द ही रूबरू होंगे ...
भाई अनंत जी आजकल अहमदाबाद में फ्री लांस आर्टिस्ट के बतौर काम कर रहे हैं .बैठकी में वो रेफूजी नाम से शामिल हैं ...
बाक़ी आप लोगन के का परिचय देई ...आप खुदे समझदार हो ॥
अपने एक भाई 'इलाहाबादी' नाम से शामिल भये है ..आपन नाम नई बतावा चाहतें ...आवे वाले टाइम माँ उ खुदे आपन परिचय देइहैन ....चलते हैं ..
चाय बैठकी जिन्दाबाद....
Thursday, January 17, 2008
BHARAT RATN KI DOUD.....
DR HARIBANS RAI BACHCHAN KE LIYE MANGA HAI. MAANAGANE WALE KAVI HAIN NAAM HAI NAADAN BANARSI. UNKA KAHANA HAI KI DR BACHCHAN NE ACHCHHI KAHANIYAN LIKHI HAIN. UNKI BAHU JAYAPRADA HAIN. POORE PARIVAAR NE DESH KI SEWA KI HAI. MAANGANE WAALE AMITABH KE LIYE BHEE MANG RAHE HAIN. AB AMITABH KABI N.R.I. RAHE HONGE KYA KAREN. JAWANI MEN TO GANDHI JI BHI VIDESH GAYE THE AUR SUBHASH BABU NE TO JAPAN MEN SENA TAK BANA LI THEE.
BANARAS MAIN BABULAAL RAHATE HAIN. SHAHAR KE GIRIJAGHAR CHAORAHE PAR ROJ ANE-JANE WALON KO PANKHA HANKTE RAHTE HAIN. UNHONE BADE BADON KO HAWA DI HAI. DUNIYA BHAR KE SAILANI UNKI PHOTO APANE SANG LE JATE HAIN. AISE LOKPRIYA ADAMI KO BHATATRATNA KYON NA DIYA JAY? AAP CHHEN TO APANE LIYE YAA PHIR MERE LIYE BHI BBHAARATRANA MANG SAKTE HAIN. TO CHUP NA BAITH SHURU HO JA GURU . BHARAT APANA DESH HAI. HAM ISKE RATNA HAIN. HAMNE ISKO SABSE KAM CHARA KHAYA HAI, SABASE KAM NUKSAAN PAHUCHAYA HAI. ASALI HAKDAAR HAM HAI. KYONKI HUM UN JAISO KO SAH RAHE HAIN. JHELANE KE LIYE THANKU.
दो घूंट-चार कश
Wednesday, January 16, 2008
आप आये बहार आई...
चाय बैठकी जिन्दाबाद...
भुट्टा भी....
जब चाय के अड्डो के साथ साथ भुट्टे के भी अड्डे इजाद किए जा रहे थे
अभी भी वो बाते याद हैं जब भुट्टा वाली चाची से
नरम नरम और गरम गरम भुट्टों की फरमाइस होती थी
बैठे बैठे कितने भुट्टे पेट के अंदर चले जाते थे, पता ही नही चलता था
भुट्टो के डंठल में लगे कुछ दानों को गिलहरी खाते हुए
कुछ भाई लोगों ने कैमरे में कैद भी किया और अखबार में छपी भी वो फोटो
तमाम यादें जुड़ी हैं उस भुट्टे वाले चौराहे से..
लेकिन अब शायद वहां कोई नही जाता होगा
क्योंकि उस चौराहे पर बैठकी करने वाले
अब कई अलग अलग शहरों में चाय की बैठकी कर रहे हैं।
कितने जज्बाती हैं हम....
chini kam
milte hain ek break ke bad...
sunil kaithwas
Monday, January 14, 2008
कस गुरु ......
संदीप सिंह
Sunday, January 13, 2008
चाय बैठकी जिन्दाबाद ......
उम्मीद से कम चश्मे खरीदार में आये .....
यारों हम ज़रा देर से बाज़ार में आये ......
चाय बैठकी के सभी बैठक बाजों ,मित्रों ,पत्रकार( असली और नक्काल दोनो) ,सकार (कार वाले ) और बेकार (बिना कार वाले ) अपने सारे यार ..स्वीकार करें मेरा नमस्कार ...आप सभी को जयहिंद ...
मित्रों ...चाय बैठकी में जरा देर से आने के लिए मुआफी चाहता हूँ ...मुझे मालुम है कि यह ऐसी जगह हैं जहाँ देर से आने के बावजूद चाय तो मिल ही जायेगी फुल नही तो कट ही सही... पैसा न भी हो तो उधार चलेगा ....
मित्रों चाय बैठकी का दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है ....पर रफ़्तार जरा धीमी है ..आप में से कुछ मित्रों के पास इन्विटेशन गया है ...उनसे अनुरोध है कि जल्दी उसे स्वीकार कर मैदान में आ जाये ... कुछ मित्र लगातार अनुरोध के बावजूद अपना मेल एड्रेस नही भेज रहे (सुनत हो न भाई ,नाम न लेबे ) ...आपके बगैर महफ़िल अधूरी है ...आय जाओ भैया ..नए बैठक बाज अनंत जी का स्वागत है ..पुराने बैठक बाजों( भाई अजय राय ,अभिनव राजेश अभिमन्यु जयंत शशि ..)ने तो महफ़िल जमा ही रखी है...पर आपो आई जाबो तो चाहिया के स्वादे बढ़ जाई ...भैया ई ब्लोग्वा आपे लोगन का है ..एक ठो शेर अर्ज है (है तो बहुत पुरान पर एमा जान बहुत है ).....
हम अकेले ही चले थे जानिबे मंजिल मगर ....
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया ...
तो भैया तो एमा `हम ' आपे लोग हो ...मैं अकेले नही हूँ .. आप सब आय भर जाओ .कारवां तो ससुर खुद बखुद चल पड़ी ... काहे से कि ई टीम के एक एक आदमी लाखन का नचावे वाला है ...तो भैया चलिथी...जल्दी बैठकी माँ आयो .........
चाय बैठकी जिन्दाबाद ........
Saturday, January 12, 2008
कहानी बयां करती तस्वीरें...



शायद यही कारण है कि राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी आज कल मीडिया के नए शिकार बने हुए हैं। हालांकि इंडियन मीडिया में वो चर्चा का विषय तब बने जब महबूबा कार्ला ब्रूनी के साथ उनके भारत दौरे की बात उठी। प्रश्न ये उठा कि क्या ब्रूनी को "प्रथम महिला" वाला प्रोटोकोल मिलेगा या नहीं? पर अंततः तय हुआ कि सरकोजी भारत आएंगे और ब्रूनी के साथ आएंगे... और वो भी गणतंत्र दिवस के चीफ गेस्ट बनकर। पर ब्रूनी फर्स्ट लेडी वाला प्रोटोकोल नहीं पा सकेंगी।
Friday, January 11, 2008
"नैनो" पर टिके सभी के नैना...

Wednesday, January 9, 2008
ताकि सनद रहे....
जब कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ता है तो उसे लड़ाने वाले वोट अपील तो करते ही हैं भाई... और करना भी चाहिए। क्यों अशोक भाई सही कह रहा हूँ न...? रही बात बेगानी सीट की तो भाई अशोक जी के लिए कम से कम मैं तो बेगाना नहीं हूँ। वो भी ऐसा ही मानते हैं। मेरा भाई चुनाव लड़े या मैं... अपील तो ज़रूर करूंगा। और हाँ मैं फिर कहूँगा कि अपील की जब जहाँ ज़रूरत होगी वह आगे भी की जाएगी। हो सकता है मैं ही करूं।रही बात व्यस्तता की तो शायद रोज़ी-रोज़गार में जुटे हर शख्स की यही समस्या है। चाहे वो मूंगफली का ठेला लगाने वाला ही क्यों न हो... फिर नक्कालों से बिल्कुल इतर "असली पत्रकारों" का व्यस्त रहना तो लाजिमी है...शुभकामनाओं सहित...अभिनव राज --Posted By abhi to Chay Baithkee at 1/08/2008 08:10:00 AM
ताकि सनद रहे....
खुशफहमी........मतलब ऐसा वहम जो खुद की ख़ुशी के लिए पाल लिया जाये.... क्यों मेरे भाई सही है ना ???तो मियाँ वहम पलने का सच बताऊँ तो मेरे पास बिल्कुल टाईम नही है... साली पत्रकारिता चीज़ ही ऐसी है (असली वाली.... मेरा मतलब अगर आपने रविन्द्र नाथ त्यागी का 'नक्कालों से सावधान ' पढा हो तो)खैर ये टिप्पणी उतनी भी सार्वजनिक नही थी जितनी इसे धो-पोछ कर साबित कि जा रही है। साफ तौर पर ये शायद संवाद या फिर मतभेद स्थापित करने कि कोशिश थी।खैर मेरे भाई मैं किन-किन विषम परिस्थितियों मे खुश रहा हूँ ये शायद आप जैसे मित्र ना जाने तो फिर तो.....(आज तो भगवान् कि दया और आप मित्रों की दुआ से और भी खुश हूँ )रही बात insted चीज़ कि तो वो इंटरनेट तो हरगिज़ भी नही है क्योंकि बाद मे आप ही चाय बैठकी मे फिर से आम अपील करते नज़र आएंगे और श्लील-अश्लील पर तेज़ टिप्पणी देते नज़र आएंगे)आपसे जैसे बुद्धिजीवियों वाले जवाब कि उम्मीद थी वो नही मिला ... पिछले ब्लोग वाला तेवर, शब्द, मौसिकी का लहजा.... बेगानी सीट पर वोट के लिए अपील टाइप... सब नदारद था।और हाँ मेरे भाई मैं वैसे ही बहुत खुश हूँ बिना खुशफहमी के ....अपने आप को पूरी तरह से वापस लेते हुए... मुआफी के साथ...आपका मित्र....
--Posted By Jayant to Chay Baithkee at 1/07/2008 07:10:00 PM
ताकि सनद रहे....
ब्लोग कोई व्यक्तिगत वार्तालाप और टिप्पणी का पन्ना नहीं... न ही होना चाहिए। आपसी संवाद के लिए इंटरनेट में ईमेल की भी सुविधा है... जो बेहद सहज और सरल है। इसे इस्तेमाल करने से कैसा गुरेज़.......???हाँ... एक बात और। वो यह कि किसी आम अपील को अगर कोई व्यक्तिगत रुप से ले ले, तो उसका कोई इलाज नहीं। इस ब्लोग में एक साथी ने कुछ ऐसा ही सोचा और ऐसा ही लिखा। समस्या उन महोदय की अभिव्यक्ति को लेकर नहीं, अपितु उनकी "खुशफ़हमी भरी सोच" को लेकर है। जिसके चलते उन्होने एक आम अपील को खुद पर टिप्पणी समझ ली। रही बात किसी कि असली और नकली शैली और लहजे की, या उसे समझने की, तो उसके लिए इन्ट्रेस्ट टाइप की चीज़ भी तो होनी चाहिए। और माफ़ कीजिएगा, फ़िलहाल वह मेरे पास है नहीं...अभिनव राज --Posted By abhi to Chay Baithkee at 1/07/2008 01:30:00 PM
ताकि सनद रहे.....
चाय पीने वाले मेरे बुद्धिजीवी भाइयों को नमस्कार......बात बिल्कुल सही और सोलह आने सच है कहिये तो मुहर मरने के लिए तीन बार बोल दूँ........नही है......नही है.....नही है......वैसे बात निकली है तो दूर तलक जायेगी..(बात होने कि मजबूरी जो ठहरी ) खैर बात बढे उसस्से पहले एक किस्सा,तो साहब एक साहब कहीं मनेजर की पोस्ट पर interview देने गए(कृपया व्यग्तिगत न लें ये साहब दुसरे हैं)वहाँ उनसे पूछा गया कि वो कंपनी से क्या उम्मीदें रखतें है?उस सुदर्शन युवक ने जवाब दिया कि मुझे पचास हजार रूपए तनख्वाह, केबिन और सेक्रेट्री चाहिऐ...एमडी ने जवाब में कहा कि हम आपको एक लाख रूपए तनख्वाह, दो महीने का बोनस, कार बंगला और एक सेक्रेट्री के साथ देंगेयुवक ने कहा आप मजाक कर रहे हैं॥एमडी ने कहा कि शुरुआत किसने कि थी ???तो मेरे अजीज मित्र पिछले ब्लोग्स कि तरफ नज़र डालें तो आप समझ जायेंगे कि शुरुआत किसने की थी। (मेरी नज़र मी हर वो चीज़ जिसपर आपका बस न चले वो भड़ास है, भले ही वो मंगल ग्रह वाली खबर हो जिसमे आप लाख चाह कर भी उन्हें चलने वाले को कुछ ना कर सकें)खैर मैंने बडे हलके लहजे मे इस मसले को समझने या यूं कहूँ कि समझाने कि कोशिश कि है कृपया ये ना भूलें कि येमेरी असली शैली नही है । (आख़िर हम बुद्धिजीवी जो ठहरे )आपका मित्र।
--Posted By Jayant to Chay Baithkee at 1/06/2008 04:30:00 PM
ताकि सनद रहे....
बंधुओं,आप सब इस ब्लोग तक आए, अपने विचार व्यक्त किए इसके लिए आपका शुक्रिया...पर एक बात है जो मैं शुरू से ही कहना चाहता रहा हूँ, वो यह कि यह बुद्धिजीवियों का मंच है... प्लीज़ यहाँ भडास निकालने का प्रयास न करें। हम सब के एक साथी ने हमारे लिए ही एक दीगर मंच प्रदान किया है, जहाँ भडास निकालने की उत्तम और सर्व सुलभ व्यवस्था है। यहाँ ऐसी अभिव्यक्तियों के लिए क्षमा करें। मुझे लगता है कि इस ब्लोग के होम पेज पर शीर्ष पर ही भाई अशोक स्वरूप जी ने कुछ पंक्तियाँ लिखीं हैं, और उसका सार भी कुछ इसी तरफ इंगित करता है।हम यहाँ कुछ ऐसे लोगों की अपेक्षा रखते हैं जो तमाम " बकैती" के साथ-साथ कुछ सार्थक बहस के मुद्दे सामने रखें। वैसे तो यह मंच सब के लिए खुला है, पर चूंकि अभी इसमे इलाहाबादियों की आमद-रफ्त अधिक है इसलिए पन्त, निराला और बच्चन की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने की हम सब की कोशिश होना चाहिए.कल्पना के उन्मुक्त विस्तार से लेकर हकीक़त के धरातल तक- हमारे समक्ष तमाम मुद्दे हैं, तमाम विषय है; जिसके लिए हम सब लालायित और व्याकुल हैं। बेहतर हो कि हम सब कुछ इस दिशा में बढ़ें ... चाय की एक चुस्की या उसकी कल्पना के साथ...!!!धन्यवाद।अभिनव राज --Posted By abhi to Chay Baithkee at 1/05/2008 11
Tuesday, January 8, 2008
भाई के लिए अपील नहीं तो फिर किसके लिए...?
रही बात व्यस्तता की तो शायद रोज़ी-रोज़गार में जुटे हर शख्स की यही समस्या है। चाहे वो मूंगफली का ठेला लगाने वाला ही क्यों न हो... फिर नक्कालों से बिल्कुल इतर "असली पत्रकारों" का व्यस्त रहना तो लाजिमी है...
शुभकामनाओं सहित...
अभिनव राज
Monday, January 7, 2008
रडुआ रिपोर्टर
रड़ुआ रिपोर्टर 8 घंटे की ड्यूटी को 12 घंटे तक करता है
क्योंकि उसे घर जाने की चिंता कम होती है।
और अपना ज्यादा से ज्यादा समय ऑफिस को देना चाहता है
ऐसे में किसी भी न्यूज सेंटर का बॉस उससे खुश रहता है।
मीडिया जगत में ऐसे लोगों का परिवार बढ़ता जा रहा है
बॉस के घर पर होने होने वाली कॉकटेल पार्टी में
ऐसे ही लोगों को बुलाया जाता है जो रणुआ हैं।
और जब चढ़ता है शुरुर तो सब एक दूसरे की खोलते हैं पोल
और बॉस खुश हो जाते हैं इन रड़ुआ रिपोर्टरों की बयान बाजी से
मसाला मिल जाता है.....दो चार दिन तक किसी न किसी की.....।
ऑफिस में आने वाली हर नयी लड़की रिपोर्टर
जज्बा पैदा करती है रड़ुआ रिपोर्टर के अंदर
होड़ लगती है उसके साथ चाय पीने के लिए
कोई हार जाता है, कोई जीत जाता है
लेकिन जो जीता वही सिंकदर
लोगों की नाक में दम करने वाले ये रिपोर्टर
इसी ....के चौखट पर आकर अक्सर खुद की खबर बना लेते हैं।
रड़ुआ रिपोर्टर दो तरह के होते हैं
एक जूनियर एक सीनियर
सीनियर अक्सर अपने जूनियर की खबर रखता है
वह नौकरी के अलावा कई मामले में उसे अपना प्रतिद्वंदी मानता है
आखिर वो ज्यादा जवान होता है भाई......
और अक्सर इसी के चक्कर में जूनियर की बेवजह लगती रहती है।
नोट-
1-रड़ुआ रिपोर्टर आजकल समाज में बदनाम होते जा रहे हैं......लोग उन्हें बेहद आवारा समझने लगे हैं. कोई अपनी बेटी उनके हवाले नही करना चाहता। इस लिए रिपोर्टर के आगे रड़ुआ शब्द हटने की उम्मीदे कम होती जा रही हैं।
2-ये सब मुझे एक रड़ुआ रिपोर्टर दोस्त ने लिखने के लिए मजबूर किया है जिसके सिर पर चांद बन गया है।
3- इनका नारा है चाय बैठकी जिंदाबाद
खुशफ़हमी पाल कर ही सही, खुश तो रहो...
हाँ... एक बात और। वो यह कि किसी आम अपील को अगर कोई व्यक्तिगत रुप से ले ले, तो उसका कोई इलाज नहीं। इस ब्लोग में एक साथी ने कुछ ऐसा ही सोचा और ऐसा ही लिखा। समस्या उन महोदय की अभिव्यक्ति को लेकर नहीं, अपितु उनकी "खुशफ़हमी भरी सोच" को लेकर है। जिसके चलते उन्होने एक आम अपील को खुद पर टिप्पणी समझ ली। रही बात किसी कि असली और नकली शैली और लहजे की, या उसे समझने की, तो उसके लिए इन्ट्रेस्ट टाइप की चीज़ भी तो होनी चाहिए। और माफ़ कीजिएगा, फ़िलहाल वह मेरे पास है नहीं...
अंत में एक बात ज़रूर कहूँगा कि अगर खुशफहमी पाल कर ख़ुशी मिले तो कोई बुराई नहीं। दोस्तों, खुशफहमी पाल कर ही सही, खुश तो रहो...
अभिनव राज
Saturday, January 5, 2008
इसे भड़ास न बनाएं...प्लीज़
प्रिय बंधुओं,
आप सब इस ब्लोग तक आए, अपने विचार व्यक्त किए इसके लिए आपका शुक्रिया...
पर एक बात है जो मैं शुरू से ही कहना चाहता रहा हूँ, वो यह कि यह बुद्धिजीवियों का मंच है... प्लीज़ यहाँ भडास निकालने का प्रयास न करें। हम सब के एक साथी ने हमारे लिए ही एक दीगर मंच प्रदान किया है, जहाँ भडास निकालने की उत्तम और सर्व सुलभ व्यवस्था है। यहाँ ऐसी अभिव्यक्तियों के लिए क्षमा करें। मुझे लगता है कि इस ब्लोग के होम पेज पर शीर्ष पर ही भाई अशोक स्वरूप जी ने कुछ पंक्तियाँ लिखीं हैं, और उसका सार भी कुछ इसी तरफ इंगित करता है।
हम यहाँ कुछ ऐसे लोगों की अपेक्षा रखते हैं जो तमाम " बकैती" के साथ-साथ कुछ सार्थक बहस के मुद्दे सामने रखें। वैसे तो यह मंच सब के लिए खुला है, पर चूंकि अभी इसमे इलाहाबादियों की आमद-रफ्त अधिक है इसलिए पन्त, निराला और बच्चन की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने की हम सब की कोशिश होना चाहिए.
कल्पना के उन्मुक्त विस्तार से लेकर हकीक़त के धरातल तक- हमारे समक्ष तमाम मुद्दे हैं, तमाम विषय है; जिसके लिए हम सब लालायित और व्याकुल हैं। बेहतर हो कि हम सब कुछ इस दिशा में बढ़ें ... चाय की एक चुस्की या उसकी कल्पना के साथ...!!!
धन्यवाद।
अभिनव राज
Friday, January 4, 2008
चाय, चुस्की और चौराहा
या फिर चुस्की मिलती है पूरे शहर की
हां हां चाय की चुस्की के साथ।
गजब का चौराहा है....ये इलाहाबाद का।
रात के दस बजते ही,
एक बेचैनी उठती है इलाहाबादी पत्रकार भाईयों के दिल में
शायद जैसे हसरते जवां होती है वैसे ही
और बस दो घंटे की बैठकी और चाय की चुस्की के साथ
अच्छे अच्छो की मां बहन हो जाती है।
अजब गजब है ये चौराह....चुस्की वाला
मुझे भी याद है, कभी कभी मैं भी बैठता था वहां
पत्रकार से लेकर इलाहाबादी कलाकार तक सब वही मिल जाते थे मुझे
गरमा गरम खबरे और चटोरी से लेकर छिछोरी तक की सभी बाते वही मिल जाती थी
लेकिन छूट गया है मेरा वो चुस्की वाला चौराहा, याद आता है मुझे वो चुस्की वाला चौराहा
लेकिन मेरे चौराहा बाज भाइयों मैं जहां भी गया हूं,
चाय की चुस्की का चौराहा मैनें जरुर बनाया है
वो दिल्ली में भी है, नोएडा में भी है, और अब मुंबई में भी
कभी आइए चाय की चुस्की लेने इस चौराहे पर। स्वागत है।
Thursday, January 3, 2008
ASALI THAND
Netram par alaav jal raha tha.teen-chaar log taap rahe the. ek ne samay puchha.Maine bataya ek baja....baat poori hone se pahle hi vah ukhad gaya.wah abhi ek hi baja? uski baat main gussa aur avishvas dono tha.Baat mujhe bhi buri lagi. Naya Katara apane ghar pahunch to bhing chuka tha. Pata chala tapmaan 2 digee thaa.aise main sadak par alav ki garmi ke sahare raat kaate nahin kat rahi hogi. intjaar haseena ka ho ya hasee jindgi ka,dono bhaari gujarte hain. Fark fakat itna hai ki ek main mauj hai aur dusre main majboor. pahle ko chhod sakte hain lekin dusra chook hone par aapko chhod dega.
lihaja
sochiye
ki
game ishqe ka jiyada ya game rojgaar ka.
GURU ALLAHABAD ME ITANI THAND PAD RAHI HAI KI CHAYA UBAL KE CHANAT TAK ME KULFI BAN JAAY RAHI HAI.
KAONO BAT NAHI , BAS ADDA VALE CHAURAHE PE TOR INTAZAR KARAB NAVA SAAL KE CHAYA HAMARI TARAF SE.
NAVA SAAL KE BADHAI, PHIR MAUKA MILI TO MILAB, EAHI BLOGAVA KE ZARIYE. RAM RAM