Monday, March 23, 2009

पत्थर

एक बस तुही नहीं जिससे खफा हो बैठा हमने जो संग तराशे वो खुदा बन बैठे ।
पाँच साल बाद ,
अबकी पूरे पाँच साल बाद,
मदारी और मजमे बाज कचहरी (जनता की) में आ गए हैं ।
सबने पिटारी झोली फैला दी है।
एक मदारी कह रहा है .... जमूरे का पेट फाड़ देगा, सर धड अलग कर देगा । उसके हाथ में चाकू है। फ़िर भी हाथ जोड़े खड़ा है। इशारा पेट की और कर रहा है बार -बार। कुछ देने पर दुआ देगा । कुछ नही देने पर ?
दूसरा ............खेल दिखने के बाद ताबीज दे रहा है । मुफ्त देने लगा तो सब मँगाने लगे । फिर सौ रुपये मांगने लगा। कई लोगों ने दिया । सबको दिलदार कहा और रुपये लौटा दिया । फिर बोला सौ नहीं तो दस निकालो, हराम में मिल रहा था तो हजार हाथ बढ़ गए थे । अब क्यों ठंडे हो गए । मौके पर ठंडे पड़ गए तो बीवी चली जायेगी कहीं और । और फ़िर ताबीज की मांग बढ़ गयी।
संपेरा पिछली बार भी आया था । सबको जडी दे गया था । बोल गया था कि सांप, बिच्छू कटाने पर लगना फायदा मिलेगा । जहर तुंरत उतर जाएगा । एक ने शिकायत की । कहा जडी बेकार निकली । उसने पुछा बाएं कटा के दायें। जवाब मिला लघु शंका के समय बीच में काट गया था । सपेरा बोला मैंने कहा था बाएं कटे तो दायें लगना और दायें काटे तो ...... । पर उसको तो बीच में ..... । सपेरा फुफकार उवाच ..... पढ़े लिखे मूर्ख हो बाबू .....मन किया था गुरु ने .....ऐसे लोगों को जडी देने के लिए । माफ़ करना ( ऊपर देखते हुए )। फिर साँप का खेल दिखने लगा । इस बार भी आखिरी पिटारा खोलने से पहले जडी बाटने लगा।







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