Sunday, June 1, 2008
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
7 comments:
Wah guru maza aa gaya photo dekh kar...lekin e sasur swaroop sir...bataibe nahin kiyen ki itna dhansu blog shuru kiye hain...
एक इलेक्ट्रॉनिक यंत्र से "कविता" कैसे लिखी जाती है ये सुनील भाई आपने बखूब दिखा दिया। काश गुऱू (प्रभात जी)की भी नज़र इन तस्वीरों पर पड़ती। बंदूक के निशाने पर बार्बी बहुत से उन सुनील कैथवास को तस्वीर खींचने पर मजबूर कर सकती है जिनके पास दिमाग के साथ ही दिल है। "कौतूहल" बच्चों का था लेकिन तस्वीर ने दिल सभी का जीता। वाह...वाह। इंतजार............
sandeep sir shukriya..........
sandy sir maja aage aur hai wach continew chay baithkee.........
laajwaab....marvellous...ati sunder ...our taarif ke jo bhi shabd sambhav hain...saare jod lena...
Ka bhai yeh tuhar taswir k kauno jawab nahi bhai..lage raho munna bhai...Cheers....!Deepak Gambhir,Allahabad
swarup sir bahut bhaut shukriya
gambhir bhai bahut bahut shukriya...
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