Friday, June 27, 2008

प्यार अंधा होता है, माया भी यही कहती….

समानान्तर चीजों में भी विरोधाभाष होता है...गज़ब का विरोधाभाष। कहने को तो वो एक पुल के दो सिरे हैं। एक सिरा मुंबई के भायखला इलाके में खुलता है तो दूसरा सात रास्ता चौराहा से पहले पड़ने वाले एक और चौराहे से जुड़ जाता है।

एस ब्रिज (S).. जी हां अब इसी नाम से जाना जाता है वो पुल। जिसके दोनों सिरों के अलावा ऊपर से गुजरती सड़क के समानान्तर छोर पर बने फुटपाथ भी हमशक्ल ही नज़र आते हैं....बस अंतर है तो यही कि फुटपाथ के एक सिरे पर थम चुकी हैं प्यार के नाम कुर्बान जिंदगियां।

.......माया, यही नाम बताया फुटपाथ पर उगी दिखने वाली उस स्थूल काया की गौर वर्ण महिला ने।

एस ब्रिज से गुजरते वक्त वैसे तो किसी के भी कदम अकसर दिखने वाले एक दृश्य को देखकर थम जाते हैं....दुधमुहे बच्चों के हाथ में बंधी रस्सी का एक सिरा जब फुटपाथ की रेलिंग में गड़ी किसी बड़ी सी कील से जुड़ा हो तो एकबारगी किसी के भी दिमाग को हथौड़े की चोट तो लगेगी ही। दरअसल माया की माने तो ये बच्चे उसी के ही हैं।

इन बच्चों के पास ही फुटपाथ पड़ी दिख जाती है वो मैली कुचैली लड़की जो अभी कुछ महीनों पहले तक अपने पैरों पर भागती फिरती थी, जाने क्या हुआ उसे मानों दीमकों ने भीतर से खोखला कर डाला। हाथ पांवों की उभरी नसें बिलकुल दीमक की बांबियां नज़र आने लगीं, कुछ दिनों पहले तक वो कूड़ा-कचरा बीनने वाले लोगों के साथ उसी फुटपाथ पर सुट्टा मारते, ताश की पत्तियां फेंटती रहती थी लेकिन अब शरीर हांड़ मांस का पुतला भर रह गया।

भरे पूरे परिवार के साथ उसी फुटपाथ पर बस दो फिट की दूरी पर रहने वाली माया बताती है कि ये पुतला कुछ महीने पहले ममता का बोझ भी ढो चुका है। बाद में आखिर ऐसा कौन सा रोग लगा कि उसकी देह में इतनी भी कूबत नहीं बची कि वो अपने पैरों पर खुद के शरीर का भार ढो सके। माया भी अब उससे पूरी तरह उदासीन है कहती है, ‘जब मरद को ही उसकी फिकर नहीं रही तो और कोई क्या करेगा।’


वैसे भी मुंबई की रफ्तार ही कुछ ऐसी है कि यहां लोगों को खुद की पीर भी जल्द ही जब्त करनी होती है, फिर पीर पराई लोग यहां क्या जाने....।

(समूची खबर पढ़े सांझ सवेरे पर....)

http://sanjhsavere.blogspot.com/2008/06/blog-post_23.html

1 comment:

Swarup said...

kabir ne kabhi kahaa tha "mayaa mahaa thagini ham jaani" par is mayaa ka kya?...samaaj ki najron se dekhaa jay to maaya khud thagi gayi..barbaad ho gayi..vagaira...lekin samaaj ke thekedaaron ke ye ye shabd uske liye kitne khokhle hain..apne pyaar ko paa lene ke uske santosh ne duniyavi raas rang ko maaya ke liye kitna bemaani banaa diyaa..sachhe arthon me to vahi "mahaa thgini" hai ...us pul ke chhor pe thgi si dekhti duniyaa ko dekh kar ,apne upar taras khane vaalon par hansti..mahathagini mayaa....