Thursday, June 26, 2008

मय हू एकाकी वन का वासी
एकाकी पन ही मेरा जीवन साथी
जब जग सारा हमको छोर चला
माय था कोलाहल से दूर खरा
थी निर्जंत भरपूर
आँखों में था आंसू मन में था भारीपन ..............................

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