विजयनगरम हॉल
Tuesday, June 3, 2008
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
2 comments:
prakash aur chaya ka adbhut sangam........
संजय जी इलाहाबाद में बिताए 14 सालों के दौरान वो भी विश्वविद्यालय में....कभी भी विजय नगरम हॉल का इतना दिव्य रूप नहीं देख सका...क्यों इस बारे में तो सुनील भाई ने बता ही दिया। सचमुच बहुत सही समय पर नज़र पड़ी और आपने भी काफी मुस्तैदी दिखाई। अदभुत। प्रदर्शनी योग्य है संभाल कर रखियेगा।
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