Saturday, July 31, 2010

जियो हाजी भाई...।

फिल्मकारों को गैंगस्टर, अंडरवर्ल्ड, माफिया, डॉन और तस्कर हमेशा से भाते रहे हैं। ऐसा स्वाभाविक भी है। 50 के दशक में, एक दिन सपनों में जीने वाली बम्बई दहल गई थी। वजह थी दिन-दहाड़े एक बैंक में हुई डकैती। मुम्बई की यह पहली बैंक डकैती फोर्ट इलाके के द लॉयड बैंक में हुई थी। इसी दौरान दिल्ली से बम्बई गए अनोखे लाल नामक व्यक्ति ने 16 लाख की यह डकैती डाली थी। अनोखे लाल को इस डकैती का आइडिया बैंक डकैती पर बनी अमेरिकी फिल्म ‘हाईवे 301’ से मिला था। डकैती के बाद से फिल्म ‘हाईवे 301’ को बम्बई में बैन कर दिया गया था। गैंगस्टर से बम्बई और बॉलीवुड का यह पहला परिचय था …….
“सुल्तान मिर्जा़”…. जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह,जिसे खाकीधारियों की नज़र में स्मगलर कहा जाता है और गरीबों की ज़ुबान में मसीहा...। वो एक को लूटता है और फिर दस में बांट देता है...सब कुछ फिल्मी....बिल्कुल फिल्मी..
जी हां मैं वही बात कर रहा हूं जो आप समझ रहें हैं फिल्म वंस अपान द टाइम इन मुंबई की,फिल्म की रिलीज होने के पहले बहुत सारे कयास सामने आए किसी ने कहा कि मुंबई के पहले डॉन हाजी मस्तान की निजी जिंदगी में दखलांदाजी कर रही है मिलन लुथारिया की यह फिल्म, तो वहीं हाजी मस्तान के घर वालों को यह आशंका सता रही थी कि पता नहीं फिल्म में क्या क्या दिखाया होगा..।
आखिरकार फिल्म रिलीज हुई,..मद्रास में भीषण बाढ़ आई और एक परिवार पानी की लहरों पर शांत हो गया,परिवार का एक बच्चा बच गया जो पता नहीं कैसे जादू की नगरी यानि मुंबई पहुंच गया...बावा भी कुछ ऐसे ही मुंबई पहुंचा था,लेकिन लहरों से बचकर नहीं अपने पिता हैदर मिर्जा़ के साथ.. बावा यानि हाजी मस्तान,हाजी मस्तान का बचपन का नाम बावा था... हैदर मिर्जा ने मुंबई पहुंचकर साईकिल और टु व्हीलर रिपेयरिग की एक दुकान खोली..अपने पिता के साथ बावा भी दुकान में हाथ बंटाता था..लेकिन दुकान पर उसका मन नहीं लगा,किस्मत ने साथ दिया और उसे एक नौकरी मिल गई,कुली की नौकरी,बावा बंदरगाह में कुली बन गया और अदेव और हांग कांग से आने वाले मुसाफिरों का सामान उठाने लगा..बंदरगाह और मुसाफिरों से याराना कुछ इस कदर बढ़ा कि समंदर की लहरों ने सीढि़यां बनायीं और और उस पर चढकर बावा जुर्म की उस मीनार पर जा बैठा जहां सिर्फ एक ही सरताज था खुद बावा...। बावा 1 मार्च 1926 को तमिलनाडु के पनैकुलम में पैदा हुए था बावा के बारें में किसी ने सोचा भी नही होगा कि एक अदद जूते पहनने को तरसने वाला यह शख्श पूरे मुंबई को अपने पैर की जूती बना लेगा...।
खैर...मैने अभी अभी वंस अपान द टाइम इन मुंबई देखी है, मुझे फिल्म बहुत अच्छी लगी उसके बाद मैने हाजी मस्तान की जीवनी अपने गूगल गुरु से निकाली और चाट ली...मुझे फिल्म भी अच्छी लगी और हाजी भाई की जीवनी भी...एकदम लल्लनटॉप। दिल्ली में अपने यूएनआई आफिस में बैठा हूं..बाहर जोरदार बारिश हो रही है कहीं शूट पर नहीं निकलना था और मेरे पास कोई काम भी नहीं था तो सोचा क्यों न कुछ बतकही ही हो जाए...।
वैसे फिल्म अच्छी है साथ ही मेरे दिमाग में अभी भी ये सवाल भी है कि क्या वास्तव में हाजी मस्तान ऐसा ही था...?

3 comments:

Rohit Singh said...

आज सुबह ही अखबार के जरिए अनोखे लाल से परिचित हुआ। इस एक शख्स ने मुंबईया फिल्मों की धारा ही बदल दी। कहते हैं कि अच्छाई से ज्यादा बुराई इंसान को ज्यादा आकर्षित करती है...

Unknown said...

हां सही है,मैने भी देखी गजब फिल्म है,वैसे अजित जी आपका भी मन अंडरवर्ल्ड की तरफ बहुत दौड़ता है...।

Unknown said...

lage raho munna bhai....tumhare tare jamin par jald ayege...anupam