रोज़ शाम को सजती है महफिल
रोड के उस पार उनकी
रोड के इस पार हमारी
छलकते हैं पैमाने
रोड के उस पार उनके
रोड के इस पार हमारे
हर घूंट के साथ नशीली होती है शाम
रोड के उस पार उनकी
रोड के इस पास हमारी
वो हर घूंट के साथ लेते हैं सुट्टा
हम हर घूंट के साथ लेते हैं भुट्टा
उनके और हमारे बीच
एक सड़क की दूरी
फिर भी नाम अलग अलग
लोग उन्हें कहते हैं शराबी और नशेड़ी
और हम!हम ठहरे चयेड़ी
भई वाह!पीता और पिलाता है
काशी भी गजब आदमी है
मधुशाला के सामने
चाय की दुकान चलाता है।
नोट:
सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन मैं और मेरे दोस्त रोज़ शराब की दुकान के सामने बैठकर चाय पीते हैं। दरअसल यह दुकान मधुशाला के ठीक सामने है और काशी नाम का यह लड़का इस दुकान को चलाता है।
Tuesday, August 3, 2010
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6 comments:
good , batter ,best
gazab ki kavita hai.....
good , batter ,best
gazab ki kavita hai.....
Ajit bahut badhiya likha hai. Badhai.....
bahut badhiya likha hai dost...
bahut hi sundar!
gajab likhte ho prabhu!
ati sundar!
qabil-e-gaur.... masha-allah!
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