मस्त चटपटा कचालू खालो भाई
मुह जल जाये तो पैसे देना.... नहीं तो मत देना
इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
6 comments:
वाकई तीखा है
जीवंत चित्र
अकेले अकेले क्यों खा रहो हो. हमें भी दे दो मजा आ जाए
मेरे नए ब्लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।
कहाँ मिल रहा है..जगह तो पता चले!!
sach men sir...muh men pani aa gaya...!
आपके चटपटे कचालू की तीखेपन को देखकर वाकई जीभ फिसलने लगी।
wwwkufraraja.blogspot.com
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