
Monday, May 24, 2010
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
6 comments:
waah ek bada hi khoobsoorat chitr
मनोरम...बेहद खूबसुरत।
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
आपने ने यादो के साये में इन तस्वीरो को संजों के रखा है। क्या बात है
अच्छा है पुरानी विरासत को अभी भी याद करते है बढ़िया है
very nice pics..
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