ये तस्वीर मैंने महाबलेश्वर की वादियों में खींची है।
Saturday, May 8, 2010
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
4 comments:
nice
अद्भुत ...जड़ में जीवन तलाशना हर कोई चाहता है ,पर उसके लिए "पुरकैफ"होना पड़ता है ...और ये हर एक के बस की बात नहीं....
...........अद्भुत
What a imagination sir. Sunder
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