Friday, May 14, 2010

जिंदगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मुकाम ....

जिंदगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मुकाम ....
वो फिर नहीं आते ...... फिर नहीं आते

10 comments:

आलोक साहिल said...

आह....
अद्भुत....

आलोक साहिल

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !

Anonymous said...

दादा, मस्त फोटो है। यार ऐसे ही फोटो खींच के प्रोत्साहन देते रहो मजा आ जायेगा।

Swarup said...

चूड़ियाँ और सिन्दूर ...सब सुहाग के प्रतीक ,पर क्या कोई खुद में पूर्ण है ..?अंततः तो सिन्दूर जिसके सिर चढ़ेगा या चूड़ियाँ जिसके हाथ सजेंगी वही सत्य है .क्या हमारे जीवन की कहानी भी कुछ ऐसी ही नहीं है ?शरीर के संजाल में उलझे हम उसी को सत्य माने बैठे हैं .रोज उसके लिए चूड़ियों का इंतजाम या किसी को सिन्दूर चढ़ा कर उसके सम्पूर्ण अस्तित्व का मालिक बन बैठने की झूठी आत्मश्लाघा के साथ जीते .हाथों से उतरी चूड़ियों या बिखरे सिन्दूर के सत्य से परिचित कराती "सत्या " की तस्वीर छायांकन के भौतिक मानदंडों पर तो खरी उतरती ही है ,उसके आत्मिक पक्ष को भी सामने लाती है ,और इसी को ले कर तो जन्मती है कला...!व्याकुल रहता है कलाकार !
"सत्या" को बधाई ,उन्हों ने सिद्ध कर दिया की वे कलम के ही नहीं 'कैमरे' के भी माहिर हैं..

फ़िरदौस ख़ान said...

अति सुन्दर...

Udan Tashtari said...

इस प्रस्तुति के लिए बधाई.

RITESH KUMAR SRIVASTAVA said...
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RITESH KUMAR SRIVASTAVA said...
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RITESH KUMAR SRIVASTAVA said...

जिन्दगी के सच से साक्षात्कार कराती इस तस्वीर में वो दर्शन छिपा है, जिसे सिर्फ दादा का दिल समक्ष सकता है...

दादा को कोटी-कोटी नमन, श्रद्धा-सुमन अर्पण