Monday, May 26, 2008
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
5 comments:
हाथ मिलाओ दोस्त.....
सही मायने में आज जुड़े ब्लॉग से। अपनों के जरिए ये तो पता चलता रहता था कि आप कुछ तस्वीरें पोस्ट करने वाले हैं, लेकिन लंबा होता इंतजार बार-बार ठेठ इलाहाबादी शब्द "बकैती" की ओर इशारा करने लगा था।
मित्र राज की बात बताओ 'खुशी के पल' कैमरे में कैद करते वक्त कैमरा हिले न इसलिए बहुत कस कर तो नहीं थामना पड़ा...?
तस्वीर "हाथ मिलाओं दोस्त" के लिए बहुत-बहुत बधाई। यकीनन प्राइज विनिंग पिक्चर।
पास होने की बधाई हमारी तरफ से भी। सस्नेह
khushi ke pal kaid karte waqt camre ko bhinchne ki jaroorat nahi padti sandeep sir bas khushi ke urja kshetra me bahte rahen aur bus click.click.click
shobhaji aap ka sneh aise hi chahiye......
meerut ki kanyaye hain ye to?
kapil inext mrt
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