Sunday, May 11, 2008

मैं, माँ और मुनव्वर

मैने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू,
मां ने मुद्दतों नहीं धोया दुपट्टा अपना।
- मुनव्वर राणा

दरअसल "माँ" पर लिखने को मैने कई बार सोचा। कई बार कलम उठाई। कई कागज खराब किए। मन-मस्तिष्क में उठ रहीं असंख्य भावनाओं को जब-जब शब्द देने की कोशिश की, असफल रहा। असफल इसलिए क्योंकि हर बार मुनव्वर राणा की चन्द पंक्तियाँ याद आईं और मैं मां के ख्यालों में खो गया। और इस कदर खो गया कि फिर कुछ भी लिखने-पढ़ने का मन नहीं किया। हां, एक बात और... वो ये कि मुनव्वर साहब ने "मां" पर जो कुछ लिख डाला है उसे पढ़ना ही मेरे लिए इतना सुखद होता है कि खुद कुछ लिखना बेहद ग़ैरज़रूरी और बेमतलब सा लगता है। मुझे याद है वो दिन जब मैं दैनिक जागरण इलाहाबाद में अपने कार्यकाल के दौरान मुनव्वर साहब से मिला था, इंटरव्यू के सिलसिले में। उन दिनों मैं इलाहाबाद में श्री एस एस ख़ान के साथ काम कर रहा था। मुझे खूब ठीक से याद है कि जब-जब ख़ान साहब अपनी स्मृतियों में खोते, अपने पत्रकार मित्र प्रताप सोमवंशी से लेकर जनाब मुनव्वर राणा तक कई लोगों के नाम उनकी ज़ुबान पर होते। मुझे वो दिन भी याद है जब एक बार मुनव्वर एक मुशायरे में इलाहाबाद आए और ख़ान साहब के साथ मैं उनसे मिला। घंटे भर की उस अनौपचारिक मुलाकात में मुनव्वर साहब बस बोलते रहे और हम सुनते रहे। मैं मंत्रमुग्ध सा कभी उन्हें देखता तो कभी उनके हाथों में दम तोड़ती सिगरेट को, जो शायद ही एक-आध बार उनके होठों तक पहुँची थी। वहाँ से लौटते वक़्त मैं लगभग झूम रहा था। वो इसलिए क्योंकि मुनव्वर साहब ने मेरे लिए चन्द लाइने लिखकर मुझे अपनी एक किताब के साथ विदा किया था। आज "मदर्स डे" पर फिर मैने जब कुछ लिखने की कोशिश की तो मां ( जो फिलहाल सैकड़ों किलोमीटर दूर इलाहाबाद में हैं ) और मुनव्वर एक साथ इतना याद आए कि कुछ भी लिख पाना दूभर हो रहा है.
- अभिनव राज, दिल्ली।

4 comments:

Udan Tashtari said...

वाकई मुन्नवर जी ने जो माँ पर लिखा है, सब शेर अद्भुत हैं.

नीरज गोस्वामी said...

सच लिखा है आप ने. मुन्नवर साहेब ने माँ पर जो जैसा लिखा है उसका कोई सानी नहीं है...उनके मुह से माँ पर लिखे उनके शेर सूनना जीवन की एक उपलब्धि है. ऐसे शायर को नमन.
नीरज

rakhshanda said...

माँ पर मुनव्वर राणा जी ने जो लिख दिया ,वो सब हम महसूस कर के भी कह नही सकते, ये खुदा की मेहरबानी और माँ की दुआएं ही हैं उनें ,जो ऐसे शेर उन से लिखवा देती है....

सुनीता शानू said...

मुनव्वर भाई से जब मुलाकात हुई मैने उनसे पूछा था आप माँ पर ही इतना क्यों लिखते है...उन्होने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा"लोग माँ की इज्जत किया करते है मगर मैने माँ से मुहब्बत की है"...