अभी कल ही क़ी बात है। देश का सबसे उम्रदराज 24 घंटे का हिन्दी न्यूज़ चैनल करवट बदल रहा था। सभी की निगाहें टिकी हुईं थी- एक नई शुरुआत पर। तय समय था रात के 9 बजकर 56 मिनट। ठीक समय पर चैनल के "लोगो" पर से परदा उठा और स्क्रीन पर हिन्दी न्यूज़ चैनलों का एक जाना पहचाना चेहरा उभरा। पुण्य प्रसून बाजपेयी। प्रसून अपने चिरपरिचित अंदाज़ में दर्शकों से रूबरू थे। पर ब्रांडिंग के इस दौर में दर्शक तो किसी "मेगा रीलांच" की उम्मीद लगाये बैठे थे। लोगों को इंतज़ार था तो किसी आमूलचूल परिवर्तन का। तभी नज़र पड़ी चैनल के "लोगो" पर, जिसका रंग बदल चुका था। दिमाग में पिछली तमाम यादें ताज़ा हो आईं। जब किसी चैनल के आने पर बालीवुड से लेकर नेताओं की बधाइयों का सिलसिला शुरू हो जाता था। बधाइयों का सिलसिला अब शुरू होगा की तब, मैं इसी ऊहापोह में था। तभी याद आई कुछ देर पहले की गई एक महिला एंकर की अपील- "बदले हुए चैनल की बदली हुई खबर आपको सोचने पर मज़बूर कर देगी"। मैने सोचने की पुरजोर कोशिश की। दिमाग़ पर भरपूर ज़ोर डाला की आख़िर ऐसा क्या देख पा रहा हूँ कि मैं सोच में पड़ जाऊं। एक बार फिर नज़र पड़ी चैनल के "लोगो" पर। नीचे लिखा था ज़रा सोचिए। मैने फिर सोचने की नाकामयाब कोशिश की। कुछ समझ में नहीं आया। रिमोट उठाया और चैनल बदल दिया। एक दूसरे टीवी न्यूज़ चैनल पर पहुँचते ही अँगुलियाँ एक बार फिर ठिठक गईं। उम्र में ये चैनल पहले वाले चैनल से थोड़ा ही छोटा था। इस चैनल का एक एंकर-पत्रकार WWE के पहलवान "खली" से दो-दो हाथ करने की फिराक में था। मन में उत्सुकता और सहानुभूति (एंकर के प्रति) एक साथ जगी। बतिस्ता और केन जैसे पहलवानो से तथाकथित नकली फ़ाइट करने वाला बच्चों का चहेता "द ग्रेट खली" कम से कम इस एंकर पर तो भारी ही पड़ेगा। तमाशा जारी था तभी मैने देखा, खली ने एंकर और उस बहुचर्चित पत्रकार को उल्टा उठाकर टाँग लिया। किसी न्यूज़ चैनल के स्क्रीन पर कोई पत्रकार ऐसी हालत में पहली बार नज़र आया था- असहाय और हारा हुआ। मुझे तुरंत पहले वाले चैनल क़ी टैगलाइन याद हो आई- "ज़रा सोचिए"। इस बार मैं वास्तव में सोच में पड़ गया था। मुझे लगा, तमाशा ही सही पर दिखाया तो "सौ फीसदी सच"। आख़िर पत्रकार और न्यूज़ चैनल क़ी तो यही दशा हो चुकी है...!!!
अभिनव राज
Friday, May 9, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
10 comments:
अरे वाह तुमने तो जमा दिया।
पुण्य प्रसून बाजपेयी जी कहाँ है किस चैनल थे सर जी।
:) क्या सचमुच यही हाल है पत्रकार और न्यूज चेनल का? मुझे तो लगता है कि आज मीडिया इतना सशक्त हो गया है कि ऎसे बाहुबलियों को उल्टा लटका सकता है...
dear sushil,
prasoon has joined zee news.
सुनीता जी,
विडंबना तो यही है कि मीडिया का ध्यान कुख्यात बाहुबलियों से हट गया है...
अफ़सोस..!
बहुत खूब...........
bhai saahab naya blogar hoon aapke blog se kafi prabhavit hoon aap bahut aacha likhte hai.....
आज मीडिया का यही हाल चाल है
कहीं है नाग नागिन का डांस
तो कहीं भूत प्रेतों का जंजाल है
कभी है रखी का पप्पी काण्ड
तो कहीं खली से पठनी खाता पत्रकार है
लगता है भईया यही है मीडिया
abhinav bhai kaya khoob kahi..khali ki nakli fiht aur news chainal ko kaya bhidaya hai.
हां! भारतीय न्यूज चैनल मुर्खता के परिचायक बनते जा रहे हैं। बिना सोचे समझे जो भी खबरें विदेशी मिडीया से मिलती है बस उसे घोट घोट कर द्र्शकों को पिलाने पर आतुर रह्ते हैं।
http://paramlowe.com/hindi
Post a Comment