मुझे याद है मुम्बई के वर्सोवा इलाके का वह बद्रीनाथ टावर। वही बद्रीनाथ टावर जहाँ उस दिन तमाम न्यूज़ चैनलों की ओबी वैन सुबह से ही मुस्तैद थी। तमाम रिपोर्टर और कैमरामैन साँस रोके खड़े थे। इंतज़ार इस बात का था कि कब अपने मुन्ना भाई और उनकी नई- नवेली दुल्हन के दीदार हों। बिल्डिंग के बाहर दरवाजे पर टकटकी लगाए पत्रकारों की इस बेचैनी से शायद संजू बाबा भी वाकिफ थे। लाल जोड़े में अपनी दुल्हन ( 'तथाकथित' शब्द जोड़ देना बेहतर होगा) मान्यता समेत वो बाहर आए। और मीडिया से कहा कि- "मैंने कहा था न कि जब मैं शादी करूँगा तो आप को पहले बुलाऊँगा ।" मुन्ना भाई मान गए कि आपको सब कुछ याद रहता है... और इसीलिए आपने मीडिया को बुलाया। पर हमारी याददाश्त भी कोई खास कमजोर नहीं है !
आपको याद दिला दूँ कि बाहर निकले "दत्त दंपति" के विजुअल्स याद कीजिए तो जितनी मजबूत पकड़ उनके हाथों की थी, उतनी ही मजबूती वो उस गाँठ को भी देने की कवायद कर रहे थे जिससे बँधे हुए वो बाहर आए थे। जिस पर गोला बना-बना कर चैनलों ने खूब दिखाया भी था।
पर ये क्या संजू बाबा...? वो गाँठ इतनी जल्दी ढीली पद गई...? या फिर कोई और चक्कर है...?
अब ये कौन सी बात हुई कि आप अपनी शादी बात से मुकर गए...और शादी को लिव इन रिलेशन का दर्जा दे दिया। अरे भाई "लिव इन" के लिए इतने ताम-झाम की भला कोई ज़रूरत होती है...? खैर संजू बाबा की सौ बुराइयाँ माफ़...। अरे भाई शादी में बुलाया था न ? और लड्डू भी खिलाया था न ? अरे भाई टीआरपी का लड्डू ...!!! अब क्या बच्चे की जान लोगे...!
संजू बाबा, यार कुछ भी करो पर थोड़ा संभाल के... समझे न ? अब पता नहीं तुम्हारी कौन सी खुराफात एक नया फसाना बन जाए। हमको क्या... हम तो फिर वही खा लेंगे। क्या पूछा ? अरे वही... टीआरपी के लड्डू...!!!
अभिनव राज
Tuesday, April 8, 2008
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