Wednesday, February 22, 2012

मेरे गांव में



मेरे गांव की युवती
पैंतीस पर पहुंची तो
उसके भीतर से रिस गयी औरत
और
फेसबुक वाली वह औरत
चालीस के बाद भी
करती है चैट
इतराती है किशोरों के बीच


क्यों होता है ऐसा
मिट्टी खोदने में बन जाती है मिट्टी
साग खोंटने में गल जाती है साग बन
कपड़े निचोड़ने में उसके भीतर से
निचुड़ जाती है उसके भीतर से
बूंद-बूंद औरत
मेरे गांव में ही ऐसा क्यों होता है?

ऐसा क्यों होता है कि
मेरे गांव की हर औरत की
देह के साथ घिस जाती है आत्मा भी
गीता ने जिसे कहा
 नैनं दहति पावक:
वही आत्मा जलती है
भुनती है, कुढ़ती है
मेरे गांव में
देह के फुटहे बरतन से
तेजी से क्यों रिस जाती है औरत
मोनोपाज से बहुत-बहुत पहले ही।





































1 comment:

sumeet "satya" said...

वर्तमान भारतीय सामाजिक परिवेश में विशुद्ध भारतीय नारी की दशा का बेहद शशक्त चित्रण.....
............शुभकामनाएं...............................