कभी नाक की सीध में
एक उंगली खड़ी कर
आंखे मार-मार देखिए
नजर आएगी
उसकी बदलती स्थिति
आगे बढ़ती है रेलगाड़ी
पेड़ दिखते हैं पीछे भागते हुए
उमस के इंतजार में पड़े
अंखुआ बनने को बेताब बीजों को
कोसते मत रहिए
उनको आत्मसात कीजिए
गलिए, पचिए खाद बनिए
थोड़ा जलिए धूप बनिए
भाफ बनिए और बरसिए
सहिए थोड़ी तपिश, उमस
अचानक एक दिन
भीतर ही भीतर आपके
प्रेम के बीज कल्ले फेंकने लगेंगे।
थोेड़ा नजरिया भर बदलिए
प्यार में क्या नहीं हो सकता।
1 comment:
अब तक इरफान भाई से सीखा था कि मोबाइल क्या-क्या कर दित्ता है लेकिन आपने तो सारी ऋतुएं बदलकर बस और बस वसंत लहरा दिया...आह!...ये कमबख्त इश्क...
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