Saturday, August 7, 2010

मंहगाई...

चावल दाल रोटी
टांग दिए गए आसमान पर
दिन भर टूंगों
निहारो उसे
और महसूस करो
कि
भरा है पेट
क्यों कि दाल रोटी तक
पहुंच सकती है
सिर्फ
रसूखदारों की सीढी
तुम अमीर थोड़े हो...।

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

समसामयिक रचना ....चिंतनीय

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर रचना

रूप said...

शानदार पोस्ट है, साधुवाद, कभी यहाँ भी पधारें. roop62 .blogspot .com