चावल दाल रोटी
टांग दिए गए आसमान पर
दिन भर टूंगों
निहारो उसे
और महसूस करो
कि
भरा है पेट
क्यों कि दाल रोटी तक
पहुंच सकती है
सिर्फ
रसूखदारों की सीढी
तुम अमीर थोड़े हो...।
Saturday, August 7, 2010
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
3 comments:
समसामयिक रचना ....चिंतनीय
बहुत सुन्दर रचना
शानदार पोस्ट है, साधुवाद, कभी यहाँ भी पधारें. roop62 .blogspot .com
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