Saturday, April 24, 2010

रेत वाला जंगल



ये तस्वीर मुंबई के पास एक बीच से उतारी है

10 comments:

sansadjee.com said...

इसी इलाहाबाद शहर में लगभग तीस साल पहले, जब जेब में सिर्फ चार आने थे, जोर की भूख लगी थी, निराला याद आए और ये पंक्तियां कलम से फूट पड़ीं....
आज सारे लोग जाने क्यों पराए लग रहे हैं।
एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए लग रहे हैं।
बेबसी में क्या किसी से रोशनी की भीख मांगे,
सब अंधेरी रात के बदनाम साए लग रहे हैं।

अजय कुमार झा said...

खूबसूरत तस्वीर है , अद्बुत कलाकारी है प्रकृति की

Sumeet Dwivedi said...

behtareen 'candid photography'.

Sumeet Dwivedi said...

behtareen 'candid photography'.

अजित त्रिपाठी said...

कैमरे की नज़र और फोटोग्राफर की निगाह दोनों बेहतरीन....खूबसूरत तस्वीर।

sunil kaithwas said...

adbhut........purkaif.

sunil kaithwas said...
This comment has been removed by the author.
Sandeep Singh said...

क्या बात है साब इस बार न तो रेत पर नाम लिखा और न ही तेल निकाला गज़ब के दरख्त उगाए हैं। लहरें तो लौट गईं निशां से छोड़े कि कुहासे की धुंध में वादी सिमट कर रह गई।
तोहफा कुबूल करें आका:)

Rajnish tripathi said...

गज़ब का आप की सोच को ये रेत और ये समुद्र की लहरे भी सलाम करते होगे ।

संजय भास्‍कर said...

कैमरे की नज़र और फोटोग्राफर की निगाह दोनों बेहतरीन....खूबसूरत तस्वीर।