Saturday, April 24, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
10 comments:
इसी इलाहाबाद शहर में लगभग तीस साल पहले, जब जेब में सिर्फ चार आने थे, जोर की भूख लगी थी, निराला याद आए और ये पंक्तियां कलम से फूट पड़ीं....
आज सारे लोग जाने क्यों पराए लग रहे हैं।
एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए लग रहे हैं।
बेबसी में क्या किसी से रोशनी की भीख मांगे,
सब अंधेरी रात के बदनाम साए लग रहे हैं।
खूबसूरत तस्वीर है , अद्बुत कलाकारी है प्रकृति की
behtareen 'candid photography'.
behtareen 'candid photography'.
कैमरे की नज़र और फोटोग्राफर की निगाह दोनों बेहतरीन....खूबसूरत तस्वीर।
adbhut........purkaif.
क्या बात है साब इस बार न तो रेत पर नाम लिखा और न ही तेल निकाला गज़ब के दरख्त उगाए हैं। लहरें तो लौट गईं निशां से छोड़े कि कुहासे की धुंध में वादी सिमट कर रह गई।
तोहफा कुबूल करें आका:)
गज़ब का आप की सोच को ये रेत और ये समुद्र की लहरे भी सलाम करते होगे ।
कैमरे की नज़र और फोटोग्राफर की निगाह दोनों बेहतरीन....खूबसूरत तस्वीर।
Post a Comment