पत्थर की मूर्ति पूजनीय है
इसलिए नही कि उसमे देवत्व है
बल्कि इसलिए कि उसने तराशे जाने का दर्द सहा है
इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
2 comments:
नमस्कार सर .चाय बैठकी में स्वागात है...कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने ... बिल्कुल सही कहा सोना आग में जल के ही कुंदन बनता है ...
bahot sahi baat kah di sir ji aapne, samjne wale ke liye kam sabd hi kaafi hote hai, murat ke us dard ko pahchnne ki nazren yanha aaj kam bachi hai....
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