Monday, September 8, 2008

भरी जवानी मै तीर्थ यात्रा


कभी ऐसा सोचा नही था कि भरी जवानी में तीर्थ यात्रा करनी पड़ेगी ... भला हो अमर उजाला वालों का देहरादून से हरिद्वार लाकर पटक दिया.....अब शायद येही दिन बचे थे कि धर्म नगरी में कि रातें करवट लेकर, 'शाम गंगा किनारे और दिन सडको कि ख़ाक छानकर बीतेगा .....

1 comment:

Swarup said...

बालक , किस्मत वाले हो ...बुदापे में तो दुनिया जाती है...कष्ट अपना शहर छूट जाने का है ...ये लाइने तुम्हारे लिए ...

भागती सड़कों पे मैं नासाजो नाकारा फिरूँ...

गैर की बस्ती में कब तक दर बदर मारा फिरूं ..

ऐ गमे दिल क्या करूं, ऐ वहशते दिल क्या करूं...