समंदर में अदाकारी न होती।
तो लहरे इस कदर प्यारी न होती॥
जराइम से मेरा घर बच न पाता।
अगर घर में निगहदारी न होती॥
मैं तेरी बात बिलकुल मान लेता।
अगर ये बात सरकारी न होती॥
हमारे गांव के ठाकुर भी नौकरी करते।
अगर उनकी जमींदारी न होती॥
तरक्की कर गयीं होतीं ये बस्ती बांद्रा की।
अगर बस्ती में रंगदारी न होती।
ये मूमकिन था कि लंका बच भी जाती।
विभीषण की जो गद्दारी न होती॥
जराइम-अपराध
निगहदारी-चौकसी
अजित "अप्पू"
Friday, December 9, 2011
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1 comment:
मैं तेरी बात बिलकुल मान लेता।
अगर ये बात सरकारी न होती॥
वाह...कितनी सच्ची बात कही है आपने...बधाई
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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