Sunday, December 11, 2011

पसीने से परिंदे तर-बतर हैं।
फिज़ाएं तल्ख़ से भी तल्ख़-तर हैं॥

ज़माना हो गया सूनामी आए।
मगर कुछ लोग अब तक दर-बदर हैं॥

हवा मत दे तू इस चिंगारी को प्यारे।
तुझे मालूम नहीं पास में तेरा भी घर है॥

तुम्हारा घर जले या लोग जलें।
भला किसको यहां किसकी ख़बर है॥

बड़े कमजोर दरवाजे हैं घर के।
किसी दिन छोड़ दे न साथ ये मुझको भी डर है॥

है उसके हाथ में मीठी कटारी।
मैं जिसको सोचता हूं हमसफर है॥

अजित "अप्पू"

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