Saturday, December 17, 2011

ग्लोबल जमाने में लोकल की चिंता बढ़ी

प्रयाग धरती की जांघ है।मेले में मूल की खोज की प्यास लेकर आने वालों की कमी नहीं है। इस बात की गवाही बिक्री का चलन दे रहा है, जो दूसरे शहरों से थोड़ा अलग है। धर्मवीर भारती की रचना यह बात पुराण कहते हैं। राजकीय बालिका इंटर कालेज में लगे किताबों का मेले में इस बात की गवाही देने वाली एक किताब आई थी। हिंदुस्तानी एकेडमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप नामक यह किताब हाथोहाथ बिक गई। यह बानगी भर है। उस ललक की जो ग्लोबल गांव के दौर में अपनी आबोहवा चीन्हना चाहती है। अपनी जड़ की तलाश में लगी है। गुनाहो का देवतासदाबहार रचना है। कंपनी बाग में प्रेम और मैकफरसन लेक पर आध्यात्म की अनुभूति कराने वाले इस उपन्यास की की 32 प्रतियां दो दिनों में बिक गईं। देश और काल की जिज्ञासा का अंत यहीं नहीं है। बुनकरों के दर्द के तानेबाने पर रचा अब्दुल बिस्मिल्लाह के उपन्यास झीनी-झीनी बीनी चदरिया की पृष्ठभूमि बनारस है लेकिन उसके तलबगार यहां भी आ रहे हैं। डा. काशीनाथ सिंह की कुख्तात किताब हरिवंश राय बच्चन की बेस्टसेलमधुशालाकी मांग हमेशा रहती है लेकिन बच्चन की आत्मकथा के दशद्वार से सोपानतक सभी सेट किसी मेले में नहीं बिकते। मुंशी प्रेमचंद हर मेले के सिरमौर होते हैं लेकिन अबकी श्रीलाल शुक्ल केराग दरबारी की धूम है। राजकमल प्रकाशन केप्रशासनिक अधिकारी मुकेश कुमार के मुताबिक दो-तीन महीनों में इसकी हजार से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। मेले में रात्रिकालीन राग दरबारीसुबह से ही बजने लग रहा है। शुक्ल जी की विश्रामपुर का संतइसके साथ ही निकल रही है। निराला का राग-विराग और अमरकांत की किताबें भी बिक रही हैं।काशी का अस्सीऔर रुद्र काशिकेय की बनारसी मस्ती की बहती गंगा’ (जिसे कहानी, उपन्यास जैसे किसी भी खांचे में रखना मुश्किल है) में भी लोग डुबकी लगाने को बेताब हैं। बेचन शर्मा उग्र की तरह अपनी खबरलेना चाहते हैं। गंगोजमुनी संगम की नगरी में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का हिंदी-उर्दू कोष और धर्मशास्त्र का इतिहास के तलबगार भी खूब हैं। वर्तमान पीड़ी की रुचि को पकड़ने वाले चेतन भगत नई किताब रिवोलूशन-2020- लव, करप्शन, एंबीशनमें लोकल हुए हैं। महानगरों से निकलकर खांटी बनारसी माटी में किरदार गढ़े हैं। उन्होंने आज के सबसे चर्चित शब्द करप्शन का इस्तेमाल किया है। पर ऐसा भी नहीं कि सब लोकल ही है। ग्लोबल गांव के किताबों से बतियाने वालों का फोकस लोकल पर है लेकिन उन्होेंने ग्लोबल को छोड़ दिया है, ऐसा भी नहीं। नोबल विजेता मारिया वर्गास लोसा की किस्सागोके तलबगार भी हैं। वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंस की ब्रीफ हिस्ट्री आफ टाइमका गूढ़ ज्ञान किशोर और युवाओं को लुभा रहा है। यूनाइटेड कालेज आफ इंजीनियरिंग की श्रद्धा कामरिकर ने बताया कि डेन ब्राउन उनको पसंद हैं लेकिन वह मिल्स एंड बून की किताबें खरीदेंगी। ब्रीफ हिस्ट्री आफ टाइम भी लेना चाहती हैं लेकिन सिर्फ 10 फीसदी छूट मिल रही है। लिहाजा वह इसे यूनिवर्सिटी रोड से खरीदेंगी, जहां मेले से ज्यादा छूट मिलती है। बातचीत के दौरान ही इस किताब को आठवीं के छात्रपार्थ भाटिया ने देखते ही खरीद लिया। 

नोट- िपछले िदनों प्रयाग के जीजीआईसी मैदान में पुस्तक मेला लगा था। यह उसी की रपट है।संयोग से यह कहीं छपी नहीं है। आपके अवलोकन के िलए प्रस्तुत है। 








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