Sunday, April 11, 2010

ये जहाँ है कहाँ !


क्या सच में- कभी कैथवास जी की फोटोग्राफ में गरीब लड़की को देखती बच्ची की आँखों में झलकती मासूमियत बरक़रार रह पाएगी, क्या सच में कभी गरीब-अमीर की दूरी कम हो पाएगी ,क्या सच में कभी गरीब आदिवासियों को उनकी जमीन वापस मिल पाएगी और वो नक्सल नही एक आम भारतीय कहलायेंगे , क्या सच में कभी कोई ऐसी पिच बन पाएगी जिसकी लम्बाई ११ गज हिंद में तो ११ गज पाक में होगी , क्या सच में कभी सफेदपोशों की सफेदी सूरज की रौशनी में तो नकाबपोशों की कालिख अमावस्या की कालिमा में गुम हो पाएगी, क्या सच में कभी लालफीताशाही मिट जाएगी, क्या सच में कभी हर बेरोजगार के हाथ में मेहनत की कमाई आ पाएगी, क्या सच में कभी चोरी हत्या बलात्कार जैसी घटनाएँ रुक जायेगी.
क्या सच में कभी कोई ऐसी दुनिया बस पाएगी???????????
शायद बस पाएगी............................ तभी तो ये परिंदा हमसे कह रहा है ...................




5 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

sarvesh upadhyay said...

भाई पूरा लिखा एकदम सही है और भावनाओं से ओतप्रोत भी लेकिन '' क्या सच में कभी गरीब आदिवासियों को उनकी जमीन वापस मिल पाएगी और वो नक्सल नही एक आम भारतीय कहलायेंगे'' ...ये थोड़ा क्लियर नहीं हुआ। कुछ साफ्ट कार्नर है क्या नक्सलियों के लिए आपके मन में। हां उन आदिवासियों के बारे में यदि कह रहे हैं जो अपनी जमीनों से दूर हो गए हैं या जिनकी जमीन उनसे छीन ली गई है तो बात ठीक है। चित्र वाकई अच्छा है और संदेश भी ठीक है।

sunil kaithwas said...

satya what a quastion.............

sunil kaithwas said...
This comment has been removed by the author.
संजय भास्‍कर said...

वाह! ऐसी कवितों से जीने की उर्जा मिलती है.
..आभार.
बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।