मौत नहीं है हल सपनो का,
माना टूटा बल अपनों का.
फिर भी हम मर जाएँ कैसे,
खुद की लाश जलायें कैसे?
सपनो के टूटे पंखों से,
अपनों के विरह मनको से.
नीड़ भला सजायें कैसे,
सोते न जग जाएँ कैसे?
फिर भी उसकी किसी छवि को,
उसके नयनो के अमित रवि को,
खुद में हम झुठलायें कैसे?
कैसे ना जी जाएँ ऐसे?
नीड़ का अपने तिनका टूटा,
सबसे प्रियतम साथी छूटा.
राह पलट पर जाएँ कैसे,
उसके सपने झुठलायें कैसे?
आखिर हम मर जाएँ कैसे,
खुद की लाश जलाएं कैसे?
Monday, August 24, 2009
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1 comment:
Imagination ki paraakaashtha.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
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