सो क्या जाने पीर पराई
यह पोस्ट दरअसल एक सफाई है। कवि रामाज्ञ शशिधर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुए काव्य विमर्श की रपट अपने ब्लॉग अस्सीचौराहा पर `कविता से पहले कवियों को दीमक हवाले करें ` शीर्षक से लिखी थी। साहित्य जगत में इसकी खूब हलचल मची थी। उसका जवाब मैंने इस तरह दिया। अच्छा लगा अच्छी बात वर्ना आत्मरति कवियों को ठेस भी लगी, ऐसा बताते हैं।
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