Sunday, May 8, 2011

माँ की लिए...

माँ के आँचल से दूर, आज ज़िन्दगी को देखा,
घनी धूपऔर ठहरी हुई छाँव को देखा,
जब पास था तो कितना दूर था,
बात- बात पर उनका हाथ छूटता था,
आज हर डगमगाते क़दमों पर, उनका संभालना आँखों ने देखा,
गर्मी की तपती दोपहर और ठण्ड की सर्द रातों में,
आँचल की ठंडी छाँव और गर्म एहसास को देखा,
अब जब भी कभी भगवान् को देखता हूँ,
तो लगता है की आज फिर, मैंने अपनी माँ को देखा..

3 comments:

Arun sathi said...

सुन्दर अहसास

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत एहसास

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर शब्द दिए भावों को .....प्रभावित करती रचना