बहुत सहेज कर रखी हैं
तुम्हारी यादें
अब भी वैसी ही हैं
जैसे तुमने दिया था
लेकिन इसमें अंकित शब्द
अतीत के हाथों, कुछ तुम्हारे हाथों,
स्वयं मेरे ही हाथों
मारे जा चुके हैं
इन मृत शब्दों की
अंत्येष्टि में आमंत्रित हो तुम
क्योंकि तुम्हारी श्रद्धांजलि ही
उन्हें मोक्ष दिला सकती है
उन्हें स्वर्गिक बना सकती है
अविनाश गौतम...
Saturday, January 29, 2011
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6 comments:
बहुत सहेज कर रखी हैं
तुम्हारी यादें
अब भी वैसी ही हैं
जैसे तुमने दिया था
लेकिन इसमें अंकित शब्द
अतीत के हाथों, कुछ तुम्हारे हाथों,
स्वयं मेरे ही हाथों
मारे जा चुके हैं
इन मृत शब्दों की
अंत्येष्टि में आमंत्रित हो तुम
क्योंकि तुम्हारी श्रद्धांजलि ही
उन्हें मोक्ष दिला सकती है
उन्हें स्वर्गिक बना सकती है
sunder .
आपके आलेख आमंत्रित हैं.
आपके आलेख आमंत्रित हैं
'' हिंदी ब्लॉग्गिंग '' पर january २०१२ में आयोजित होनेवाली राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए आप के आलेख सादर आमंत्रित हैं.इस संगोष्ठी में देश-विदेश के कई विद्वान सहभागी हो रहे हैं.
आये हुवे सभी आलेखों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करने क़ी योजना है. आपसे अनुरोध है क़ी आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें.
इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें --------------
डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
के.एम्. अग्रवाल कॉलेज
पडघा रोड,गांधारी विलेज
कल्याण-पश्चिम ,४२१३०१
जिला-ठाणे
महाराष्ट्र ,इण्डिया
mailto:manishmuntazir@gmail.com
wwww.onlinehindijournal.blogspot.कॉम
०९३२४७९०७२६
kya baat hai...
mrit ho chuke shabdon ki antyesti per amantrit kar ek bar fir milane ka bahana dhundh liya hai.....Wah..
kya baat hai.
kya main man lun ki antyeshti kar dene bhar se yadein mit jaati hain...
likha hai accha par itne nirashavaadi na bane...
post bhee or comment bhee, bahut khubsuarat.narayan narayan
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