विधाता ने मुझको बनाया था जिस दिन
धरती पे भूंचाल आया था उस दिन
मुझे देख सूरज को गश आ गया था
मेरे रूप पर चाँद चकरा गया था
मैं तारीफ़ अपनी करूँ या खुदा की
तकदीर के लेख लिखने थे बाकी
लिखा उसने ये कोई लीडर बनेगा
वकालत करेगा पीडर बनेगा
ये बिगड़ेगा कम, और अक्षर बनेगा
मिलिटरी या नेवी का अफसर बनेगा
बनेगा प्रतिदिन ये घोड़ों का मालिक
हज़ारों का लाखों का करोड़ों का मालिक
ये दुनिया में हल चल मचाता रहेगा
सदा मुफ्त का माल खाता रहेगा
सभी वार है इसके हक में अक्सर
ब्रहस्पति, को बुधवार, शुक्र शनिश्चर
पढ़ा लेख मैंने विधाता का लिखा
शनिश्चर की नी को गलत उसने लिखा
मैं बोला आपने लिखा नी गलत है
शनिश्चर में लिखना बड़ी ई गलत है
वो बोले तू क्यों तर्क कर रहा है
बड़ी छोटी ई में फर्क कर रहा है
अभी तो तू पैदा भी नहीं हुआ है
तुझे क्या पता ये गलत या सही है
करेगा अनजान तू क्या जन्म पाकर
मेरी पोल खोलेगा दुनिया में जाकर
तेरे भाग्य को मैं तो चमका रहा था
शनिश्चर से ले के इतवार तक आ रहा था
जो तू चाहता है, वही कर रहा हूँ
बड़ी ई की गलती सही कर रहा हूँ
इसे ठीक लिखता हूँ मैं तेरे सर पर
शनिश्चर शनिश्चर शनिश्चर शनिश्चर
दिया शाप उसने यूं गुस्से में आकर
नहीं चैन पायेगा धरती पे जाकर
जन्म ले के यूं ही विचरता रहेगा
सदा जिंदगी में गलतियाँ ठीक करता रहेगा
फटे हाल होगा, फटीचर रहेगा
उम्र भर तो हिंदी का टीचर रहेगा
--अज्ञात
Friday, January 21, 2011
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2 comments:
इसके लेखक कौन हैं ?
राकेशानंद मिश्रा
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