गर्मी की तपन से निजात दिलाते थे ये मकान,
तर हो जाता था कलेजा......
लेकिन समय के साथ लोग बदलते गये
छोड़ते गये अपने गांव को
भूलते गये गीली मिट्टी की खुशबू
शहर में फ्लैट के अंदर कैद हो गये वो लोग
जिनके गांवों के घरों कच्ची मिट्टी वाले आंगन थे
और आंगन के बीच तुलसी की बिरवा
सब बदल गया , ढह गया मिट्टी का वो मकान
किसी जिम्मेदार बुजुर्ग की तरह.
गांव गया था , कुछ ऐसे ही मकान गिरे मिले
और कुछ पक्की ईंटो में कैद।
गांव से मैं भी शहरवाला बन गया था
हाथ में डिजिटल कैमरा था और
कैद कर ली ये तस्वीर।