Thursday, March 18, 2010
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इलाहाबाद शहर का अपना अलग अंदाज, अलग मिजाज़ है...इस शहर के बाशिंदो के लिए बैठकी करना टाइम पास नहीं बल्कि उनकी ज़िंदगी का हिस्सा है...इस बैठकी में चाय का साथ हो तो क्या कहने...फिर आइये चायखाने चलते हैं...इन बैठकियों में खालिस बकैती भी होती है और विचारों की नई धाराएं भी बहती हैं...साथ ही समकालीन समाज के सरोकारों और विकारों पर सार्थक बहस भी होती है...आपका भी स्वागत है इस बैठकी में...आइये गरमा-गरम चाय के साथ कुछ बतकही हो जाए...
7 comments:
जिमनास्ट को भी देख लिया.
this photograh's message is clear & louder than anything.
गरीब लोगों की, उम्रभर की
गरीबी मिट जाये,
ऐ अमीरों
बस एक दिन के लिये अगर तुम
जरा सा खुद को गरीब कर लो।
कुछ ऐसा ही ये तस्वीर बया करती है।
सुनील भाई सच कह रहा हूं न।
"हाथों के बल चलता पापी पेट"
तुम्हारे निहारने से क्या भला होगा सखी जिन्हें ये तमाशा दिखा रही हूं वो तो बातों में मशगूल हैं....
are ser good timeing click your finger..
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