Bahut sahi.........PHOTU...rohit ji man kar raha hain ki kaash....ham bhi hote wahan....
kai bhai logon ko lag raha hain ki chay bathaqi ko garam karne ki zarurat hai.....waise bhi tanda matlab koka cola aur bhi Bidesi chizon se parhez karna chahiye...aur hamara to mijaz hi thoda garam hain....garmi hoti achchi cheez hain par is mohalle mai kabhi kabhi daman jala deti hain...kul mila ke garma garm jab tak chay type ki cheez ho tabhi tak sahi ....
Sunday, February 24, 2008
बहुरूपिया......



देखो देखो.........
शहर की बीच सड़क पर भेष बदले शांती का संदेश दे रहा है बहुरूपिया।
और टकटकी लगाये लोग तख्ती पर नजर डाले बगैर
देख रहे हैं बहुरूपिया के अजब गजब चेहरे को।
ये बहुरूपिया रोज निकलता है नये नये भेष में।
लोग सिर्फ उसके रूप रंग पर मर जाते हैं,
कोई नही समझता उसकी चाल को।
कोई नही समझता उसके संदेश को।
सब कुछ नाटक सा चलता रहता है
शहर की सड़को वाले रंगमंच पर।
हे बहुरूपियें तुम रोज निकलो शांति संदेश के साथ
कभी न कभी लोग तुम पर नही तुम्हारी तख्ती पर नजर जरूर डालेगें।
Sunday, February 17, 2008
Friday, February 15, 2008
itna sanatta kahe bhai
ka bhai ka matlab hai valentine wale din baithkeee mein itna sanatta. inext mein praveen ji ka article chappa hai in the favour of love. aap logo ne pada. agar pada to phir uske baad bhi itni prem virodhi chuppi kyon. shiv sena walen se dar rahe ho ka bhai logo. aur ha sunil bhai aaj kal 11 baje so kar ut rahe hai. badiya photo dekhe to jamana beet gaya.bus city light mein mast hai .aur ha ashok sir aap se request type ki cheej hai ki prabhat sir ko tatkal prabhav se invite kar di jiye taki bakiti ka star thoda uccha uth jaaye. waise bhai sahab agle do char din mein allahabad aane ka mood bana rahe hain.
Wednesday, February 13, 2008
हम भी पा गए चाय बथ्की
पढें लिखे टू थोड़ा बहत हम भी है लेकिन चाय बठकीकी आप लोगो की बेकती नही पड़ पा रहा था .दरअसल पढें लिंखे लोगो को उन्पद बना देने की जो इंटरनेशनल खुराफात चल रही है मैं भी उसका सिकार हो गया था । खैर मैंने अपने देसी जुगाड़ से इस तरकीब से निपट लिया है .और हा अशोक सर आपने बाकि ब्लोग्गेर्स से हम लोगो का परिचय कराया इसके लिए सुक्रिया .लेकिन सुनील भाई इस बात से बहुत नाराज थे की आप उनको भी किसी परिचय का मोहताज समझ रहे है अपन अल्लाहबदी है टैब कहे का परिचय .बाकि जो अलाहाबाद मां दुई बच्चा अखबार गएँ है उई बैया बैया चले लगे की नही .बाकि सब तीख है मरत की चाय मैं चीनी जादा है .
Tuesday, February 12, 2008
साहित्य की अलख जगाये रखिये...
सभी बैठक बाज़ भाइयों को नमस्कार।
कम्प्यूटर जी कुछ दिनों से हमसे नाराज़ चल रहे थे (कुछ तकनीकी कारणों से चाय बैठकी का पेज खुल नही रहा था) पर आज हमारे और कम्प्यूटर जी के बीच सभी गिले-शिकवे दूर हो गए। और शायद इसीलिए आपके सामने आ सका हूँ। बीते एक-दो पखवारे में बैठक बाज़ी को जैसे ग्रहण लग गया है। मैं आज लौटा तो मुझे कुछ ऐसा ही लगा। भाई संदीप सिंह और अजय राय जी भी कहीं और व्यस्त हो गए हैं। उनसे ये अपेक्षा नहीं है। और हाँ कुछ नए साथी जुडे तो ज़रूर पर उनकी मौजूदगी को शब्दों के जरिये नहीं महसूसा जा सका। हाँ एक बात और, संदीप सिंह की बेहतरीन लेखनी के लिए उन्हें बधाई और साधुवाद। ठिठुरन भरे इस सर्द मौसम में साहित्य की अलख जगाये रखिये... अगर वास्तव में बैठक बाज़ी के शौकीन हैं तो।
आपके शब्दों के इंतज़ार में, आपका भाई
अभिनव राज
कम्प्यूटर जी कुछ दिनों से हमसे नाराज़ चल रहे थे (कुछ तकनीकी कारणों से चाय बैठकी का पेज खुल नही रहा था) पर आज हमारे और कम्प्यूटर जी के बीच सभी गिले-शिकवे दूर हो गए। और शायद इसीलिए आपके सामने आ सका हूँ। बीते एक-दो पखवारे में बैठक बाज़ी को जैसे ग्रहण लग गया है। मैं आज लौटा तो मुझे कुछ ऐसा ही लगा। भाई संदीप सिंह और अजय राय जी भी कहीं और व्यस्त हो गए हैं। उनसे ये अपेक्षा नहीं है। और हाँ कुछ नए साथी जुडे तो ज़रूर पर उनकी मौजूदगी को शब्दों के जरिये नहीं महसूसा जा सका। हाँ एक बात और, संदीप सिंह की बेहतरीन लेखनी के लिए उन्हें बधाई और साधुवाद। ठिठुरन भरे इस सर्द मौसम में साहित्य की अलख जगाये रखिये... अगर वास्तव में बैठक बाज़ी के शौकीन हैं तो।
आपके शब्दों के इंतज़ार में, आपका भाई
अभिनव राज
Monday, February 11, 2008
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