Saturday, September 24, 2016

डायरी के पुराने पन्नों से  ..... एक बार फिर

बंद पलकों से उसे
अपनी बांहों में महसूस करता रहा
सागर की उठती लहरें
दिल के तारों को झनझना रही थीं
मन में एक अजीब सी कसमसाहट थी
उसे अपने अंदर समा लेने की
हाथ मचल रहे थे

अचानक पीछे से किसी ने आवाज़ दी
आंख खुली तो देखा
दूर तक सन्नाटा फैला था
और
समंदर शांत था !

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

यहाँ भी आईये फिर से :)