डायरी के पुराने पन्नों से ..... एक बार फिर
बंद पलकों से उसे
अपनी बांहों में महसूस करता रहा
सागर की उठती लहरें
दिल के तारों को झनझना रही थीं
मन में एक अजीब सी कसमसाहट थी
उसे अपने अंदर समा लेने की
हाथ मचल रहे थे
अचानक पीछे से किसी ने आवाज़ दी
आंख खुली तो देखा
दूर तक सन्नाटा फैला था
और
समंदर शांत था !
बंद पलकों से उसे
अपनी बांहों में महसूस करता रहा
सागर की उठती लहरें
दिल के तारों को झनझना रही थीं
मन में एक अजीब सी कसमसाहट थी
उसे अपने अंदर समा लेने की
हाथ मचल रहे थे
अचानक पीछे से किसी ने आवाज़ दी
आंख खुली तो देखा
दूर तक सन्नाटा फैला था
और
समंदर शांत था !
1 comment:
यहाँ भी आईये फिर से :)
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