Thursday, April 25, 2013


कुछ यूं हुए तक्सीम हम

बड़े भाई ने भरा फार्म
छोटे भाई ने भी भरा फार्म
पिता रह गए अकेले
उन्होंने लिखा माता का नाम
जमा कर आए फार्म
कुछ यूं भरा गया राशन कार्ड
कुछ यू हो गए तक्सीम हम
पहले रसोई गैस के चक्कर में
फिर बांट दिए गए हम
कोटे पर मिलने वाले
गेहूं, चावल, चीनी
केसोसिन तेल के फेर में।
प्रकृति की देन के तिजारत में
तक्सीम होते गए रिश्ते
बंटते गए बाप-बेटे, पति-पत्नी, मां-पिता
बिना जाने समझे होते गए तक्सीम सब।


बिल्लियां, बच्चियां, मोमबत्तियां

दुनिया बनी तब बिल्ली बनी थी
दुनिया बनी तब सड़क नहीं थी
दुनिया बनी तो आदमी बने
पहिया बना, गाडि़यां बनीं, सड़कें बनी
आदमी ने लिखना-पढ़ना सीखा
संविधान रचा गया, जिसमें लिखा
बिल्लियां नहीं काट सकतीं रास्ता
अनपढ़, अनजान, अभागी बिल्लियां
रास्ता काट मारी जाती हैं ट्रकों से कुचल

दिल्ली से दौलताबाद तक कुचलती
अबोध बच्चियों ने भी नहीं पढ़ा संविधान
जिसे बदलने के वास्ते पिघल रही मोमबत्तियां। 

2 comments:

Swarup said...

bahut khoob...!

Madan Mohan Saxena said...

वाह.सुन्दर प्रभावशाली ,भावपूर्ण ,बहुत बहुत बधाई.
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